उत्तर प्रदेश के बैरागढ़
गाँव में स्थित मंदिर धार्मिकता, सिद्धस्थल होने के कारण देश भर में विख्यात है. माँ शारदा देवी का मन्दिर
जालौन जिले के उरई मुख्यालय से लगभग तीस किलोमीटर दूर ग्राम बैरागढ़ में स्थित है. इस
मंदिर में ज्ञान की देवी माँ शारदा की अष्टभुजी मूर्ति स्थापित है. कहते हैं कि इस
शक्ति पीठ की स्थापना चन्देलकालीन राजा टोडलमल द्वारा ग्यारहवीं सदी में कराई गई
थी किन्तु माँ शारदा की मूर्ति हस्तनिर्मित नहीं है. किवदंती है कि गाँव में स्थित
एक कुंड से माँ शारदा स्वयं प्रकट हुई थीं, इसीलिए इस स्थान
को शारदा देवी सिद्ध पीठ कहा जाता है. यह स्थल सुवेदा ऋषि की तपोस्थली रही है और
उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर माँ शारदा कुंड से प्रकट हुई थीं. वह कुंड वर्तमान
में इस मंदिर के पीछे बना हुआ है. इस शक्ति पीठ का दर्शन करने वाले श्रद्धालुओं के
अनुसार माँ शारदा की यह मूर्ति पूरे दिन में तीन रूपों में दिखाई देती है. प्रातःकाल
यह मूर्ति एक कन्या के रूप में दिखती है, दोपहर में इस मूर्ति में युवती का रूप नजर
आता है और सायंकाल इसी मूर्ति में माँ का रूप दृष्टिगोचर होता है.
बैरागढ़ स्थित माँ शारदा शक्ति पीठ
माँ शारदा की प्रतिमा |
सम्पूर्ण देश में बैरागढ़
का यह मंदिर अपनी धार्मिकता और सिद्धपीठ होने के कारण प्रसिद्द है तो यह अपनी
ऐतिहासिकता के लिए भी विख्यात है. यह स्थल बुन्देलखण्ड के अप्रतिम वीर योद्धा
आल्हा और पृथ्वीराज चौहान के युद्ध का साक्षी है. आल्हा और ऊदल दो भाई थे जो महोबा
के दशरथपुरवा गाँव में जन्मे थे. दोनों भाई बचपन से ही अत्यंत वीर और पराक्रमी थे.
आल्हा-ऊदल राजा परमाल के सेनापति थे. सन 1181 में उरई के राजा माहिल की कूटनीति पर राजा परमाल ने आल्हा-ऊदल
को राज्य से निष्कासित कर दिया. जिसके चलते दोनों भाइयों ने कन्नौज के राजा लाखन
राणा के यहाँ शरण ली.
पृथ्वीराज चौहान
को जब इस बात की खबर लगी तो उसे लगा कि आल्हा-ऊदल से विहीन सेना को आसानी से जीता
जा सकता है. बुन्देलखण्ड को जीतने के उद्देश्य से पृथ्वीराज चौहान ने महोबा पर आक्रमण
कर दिया. कीरत सागर मैदान में चल रहे युद्ध रोकने के लिए पृथ्वीराज ने राजा परमाल
से उनकी बेटी चंद्रावल, पारस
पथरी और नौलखा हार सौंपने की शर्त रखी. यह शर्त मानना पृथ्वीराज की गुलामी
स्वीकारने जैसा था. राजा परमाल की पत्नी मल्हना ने जब यह खबर आल्हा, ऊदल के पास कन्नौज पहुँचाई तो वे दोनों भाई और कन्नौज नरेश ने साधुवेश
में कीरत सागर के मैदान में पहुँच कर पृथ्वीराज की सेना को पराजित कर पृथ्वीराज
चौहान को जीवनदान दिया.
आल्हा और ऊदल माँ
शारदा के उपासक थे. जिसमें आल्हा को माँ शारदा का वरदान था कि उन्हें युद्ध में
कोई नहीं हरा पायेगा. कहा जाता है कि आल्हा-ऊदल और पृथ्वीराज चौहान के बीच 52 बार
युद्ध हुआ, जिसमें हर
युद्ध में पृथ्वीराज की बुरी तरह से हार हुई. बैरागढ़ का युद्ध इनके बीच का अंतिम
युद्ध कहा जाता है. इस युद्ध में ऊदल को वीरगति प्राप्त हुई और आल्हा ने पृथ्वीराज
चौहान को पुनः जीवनदान देते हुए वैराग्य ले लिया. इसी कारण से इस स्थान को बैरागढ़
के नाम से जाना जाता है.
बैरागढ़ में हुई
भीषण लड़ाई में आल्हा के भाई ऊदल को पृथ्वीराज के सेनापति चामुंडराय ने धोखे से
मार दिया. अपने भाई की मृत्यु का समाचार सुनकर आल्हा क्रोध से भर उठे और पृथ्वीराज
की सेना पर कहर बनकर टूट पड़े. लगभग एक घंटे के भीषण युद्ध के बाद आल्हा ने पृथ्वीराज
को हरा दिया. उसके बाद आल्हा ने विजय पश्चात् माँ शारदा से वरदान स्वरूप प्राप्त
सांग को माँ शारदा के चरणों के पास गाड़ दिया. कहते है कि आल्हा ने उस सांग को जमीन
से बाहर निकालने की चुनौती पृथ्वीराज चौहान को दी. पृथ्वीराज उस सांग को जमीन से
बाहर न निकाल सके. इसके बाद आल्हा ने सांग को ऊपर से टेढ़ा करके उसे सीधा करने की
चुनौती दी. इसे भी पृथ्वीराज पूरा न कर सके. पृथ्वीराज चौहान को बुरी तरह से परास्त
करने के बाद भी अपने गुरु गोरखनाथ के आदेश पर आल्हा ने पृथ्वीराज को जीवनदान दे
दिया. इसके बाद आल्हा ने बैराग ले लिया और माँ शारदा की भक्ति में लीन हो गए.
आल्हा के द्वारा माँ शारदा के चरणों के नजदीक गाड़ी हुई सांग आज भी मन्दिर के मठ के
ऊपर निकली दिखाई देती है. ये सांग 30 फिट से भी अधिक ऊँची है और लगभग इतनी ही जमीन में गड़ी है.
मंदिर के मठ पर गड़ी आल्हा की सांग
मन्दिर में आल्हा द्वारा गाड़ी गई सांग इसकी प्राचीनता को दर्शाता है. आज भी बैरागढ़ में माँ शारदा के मंदिर में मान्यता है कि हर रात दोनों भाई आल्हा और ऊदल आराधना करते हैं. कहा जाता है कि रात को सफाई के बाद मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते हैं लेकिन सुबह जब कपाट खोले जाते हैं तो वहाँ पूजा करने के प्रमाण मिलते हैं. बैरागढ़ के अलावा माँ शारदा शक्ति पीठ मध्य प्रदेश के सतना के नजदीक मैहर में स्थित है.
मंदिर प्रांगण में बना कुंड, जहाँ से माँ शारदा स्वयं प्रकट हुईं थीं |