![]() |
| देवेन्द्र सिंह जी - लेखक |
पशन्ना
आदि शिवराम तातिया के इतने सैनिकों का मुकाबला नही कर सकते थे। शिवराम तातिया ने इन
अंग्रेजों से कहा वे बिठूर के नाना पेशवा धुधु पन्त के प्रति वफादार है और उनको पेशवा
का आदेश है कि अंग्रेजों को कैद करके कानपुर लाया जाय। ग्रिफिथ,
पसन्ना, उनकी पत्नी, पांच
बच्चे और दो भतीजों को दो बैलगाड़ियाँ को बैठा कर ये सैनिक 18 जुलाई की शाम को कालपी पहुचे। शिवराम तातिया बहुत चालाक था उसकी मंशा थी कि
अंग्रेज सराय में रुके हुए सैनिकों द्वारा मार दिए जाएँ। इससे उस पर कोई जुम्मेदारी
भी नही आती और यदि बाद में कहीं अंग्रेज फिर से क्रांति को दबाने में सफल हो जाय तो
उस पर कोई जुर्म न बने। असल में केशवराव और उसके दोनों पुत्र दो नाव में एक साथ पैर
रखे थे। उनका मुख्य उद्देश्य जालौन का धन वसूल करके गुरसराय भेज कर अपना खजाना भरना
था इस लिए वे अपने को क्रांतिकारियों के साथ होने का दिखावा करते थे। शिवराम तातिया
को जब पता चला कि सराय में इन अंग्रेजों की हत्या इस कारण नहीं हो सकी क्योंकि दुकानदारों
ने विरोध किया था तो वह उनको सजा देने के लिए उरई लौटा। यहाँ केशवराव द्वारा नियुक्त
थानेदार ने शिवराम तातिया को सात नामों की सूची दी, जिन्होंने आग लगाने का विरोध किया
था। उसको पता चला कि विरोध करने वालो की अगुवाई गणेश बजाज, जिसकी
सराय में कपड़े की दुकान थी, ने की थी। शिवराम ने गणेश को पकडवा लिया। गणेश ने बड़ी खुशामद
करके साठ रु० जुर्माना देकर अपनी जान बचाई। बाद का किस्सा भी यहीं पर जान लें। अंग्रेजों
ने गणेश को अपना बड़ा हितैषी माना और जब फिर उनका जालौन पर अधिकार हो गया तब गणेश को
बड़ा सम्मान दिया, उसका नाम दरबारियों की लिस्ट में शामिल किया
गया। गणेश के मरने के बाद उसके पुत्र लल्ला को भी यह सम्मान मिला। उसका नाम भी दरबारियों
की सूची में रहा।
कालपी
में शिवराम ने इन अंग्रेजों को सराय में बंदी बना कर रखा और उनको कानपुर भेजने की तैयारी
करने लगा। भेजने की तैयारियाँ हो ही रही थी तभी कानपुर में क्रांतिकारियों की पराजय,
नाना के बिठूर पलायन और अंग्रेजों द्वारा कानपुर पर अधिकार कर लिए जाने
की सूचना कालपी पहुँची। इधर बंदी रहते हुए पशन्ना ने एक हरकारे को रिश्वत देकर कानपुर
एक पत्र भेजने में सफलता प्राप्त कर ली। कानपुर में कुख्यात जनरल नील को यह पत्र मिला।
वहाँ से से जनरल नील ने एक कड़ा पत्र शिवराम तातिया के पास कालपी भेजा, जिसमें सभी अंग्रेजों के जानमाल की रक्षा और कानपुर सुरक्षित भेजने को कहा।
केशवराव और उनके दोनों पुत्र दो नावों पर एक साथ सवारी करके जिस पक्ष की विजय हो उसकी
तरफ रहने का फायदा उठाना चाहते थे। जैसे ही कानपुर में अंग्रेजों की जीत हुई और समाचार
कालपी आया वैसे ही शिवराम का व्यवहार पशन्ना के प्रति एकदम से बदल कर मैत्रीपूर्ण हो
गया।
22
जुलाई को 42 इन्फेंट्री के क्रांतिहारी सैनिक सागर
से कालपी आए, उन्होंने कालपी में रह रहे अंग्रेजों के बारे में
जानने की कोशिस की। शिवराम तातिया के लिए अब अंग्रेजों की जान बचाना बहुत आवश्यक था
क्योंकि नील का पत्र उसको मिल चुका था। वह समझ रहा था कि कहीं इन सैनिकों ने यदि अंग्रेजों
की हत्या कर दी तो फिर जनरल नील उसको नहीं छोड़ेगा। नील के कानपुर में किए गए अत्याचार
की कहानियाँ उसको पता चल चुकी थीं। अत: उसने सभी अंग्रेजों को कालपी से 15 मील की दूरी पर चुर्खी नामक स्थान पर सुरक्षा के दृष्टिकोण से भेज दिया। अब
आपको आश्चर्य हो रहा होगा कि इनको चुर्खी ही क्यों भेजा तो आप को बतला दूँ कि चुर्खी
में रानी लक्ष्मीबाई की सौतेली बहिन, मोरोपंत की पुत्री व्याही
थी। मोरोपंत की ससुराल गुरसराय में थी। केशवराव गुरसराय के ही तो राजा थे अत: निकट
सम्बन्धी थे। जब सागर के सैनिक कालपी से चले गए तब फिर 11 अगस्त
को सभी अंग्रेजों को चुर्खी से कानपुर भेजने के लिए कालपी लाया गया। कालपी से अंग्रेजों
को कानपुर भेजने के लिए बहुत अच्छी-खासी तैयारियां करनी थी सुरक्षा के लिहाज से और
आराम के लिहाज से भी। 16 अगस्त को इन अंग्रेजों को कानपुर प्रस्थान
करना था। इसी मध्य 15 अगस्त को नाना के समर्थक कुछ सैनिक कालपी
आए। उन्होंने कालपी में मौजूद क्रान्तिकारी सैनिकों का मनोबल बढाने के लिए झूठ-मूठ
प्रचारित कर दिया कि इलाहाबाद और कानपुर में फिर से क्रांतिकारियों का अधिकार हो गया
है। यह खबर बहुत बढा-चढा कर बतलाई गई थी, जिसको शिवराम तातिया
ने सच मान लिया। वह फिर पलटी मार गया। उसने पशन्ना से कहा कि कानपुर में फिर से नाना
साहब का अधिकार हो गया है और चूँकि वह नाना साहब का समर्थक है अत: अब वह उनको अंग्रेजों
के पास नही भेजेगा और नाना के आदेशों का पालन करेगा। उसने सभी अंग्रेजों को फिर से
हिरासत में लेकर चुर्खी भेज दिया। अगस्त का महीना समाप्त होने को आ रहा था,
परन्तु पशन्ना आदि अभी भी कानपुर नहीं पहुचे थे। अत: जनरल नील ने पुन:
एक कठोर पत्र इस विषय में केशवराव के पास भेजा। नील की ख्याति उसके द्वारा कानपुर में
किए गए जघन्य अत्याचारों के कारण क्रूरतम अंग्रेज सेनानायक रूप में हो गई थी। केशवराव
ने अब अंग्रेजों को तुरन्त कानपुर भेजने में ही खैरियत समझी। 31 अगस्त को फिर से सब अंग्रेजों को चुर्खी से कालपी लाया गया। केशवराव ने धन,
बैलगाड़ियाँ और घोड़ों की व्यवस्था करके अपने सैनिकों की सुरक्षा में सब
अंग्रेजों को कानपुर भेज दिया। डिप्टी कलेक्टर ग्रिफिथ, पशन्ना,
उनकी पत्नी, पांच बच्चे तथा दो भतीजे 2
सितम्बर 1857 को सकुशल कानपुर पहुँचे।
आज
इतना ही, बाकी अगली पोस्ट में।
बहुत से
मित्र सन्दर्भ जानने के लिए कहते है उनके सूचनार्थ बतला दूँ कि क्रांति के समाप्त हो
जाने पर पशन्ना कुछ समय के लिए जालौन में पोस्ट किए गए थे थे और उनसे यहाँ पर क्रांति
कैसे हुई आदि के बारे में एक पूरी रिपोर्ट देने को कहा गया था। उन्होंने रिपोर्ट बना
कर डिप्टी कमिशनर टरनन को दी जिसको उन्होंने सरकार को प्रेषित किया था। रिपोर्ट अंग्रेजी
में प्रिंटेड है और राज्य अभिलेखागार लखनऊ की लाइब्रेरी में देखी जा सकती है। रिपोर्ट
का टाइटल है नरेटिव आफ इवेंट्स अटेंडिंग द आउटब्रेक आफ डिस्टर्बेंसेज एंड द रेस्टोरेशन
आफ अथार्टी इन द डिस्ट्रिक्ट आफ जालौन,1857-59। धन्यवाद..
+++++++++++++
© देवेन्द्र सिंह (लेखक)
++
कॉपीराईट चेतावनी - बिना देवेन्द्र सिंह जी की अनुमति के किसी भी लेख का आंशिक अथवा पुर्णतः प्रकाशन कॉपीराइट का उल्लंघन माना जायेगा. ऐसा करने वाले के विरुद्ध कानूनी कार्यवाही की जा सकती है. जिसके लिए वह व्यक्ति स्वयं जिम्मेवार होगा.

If you’ve ever dreamed of living amid nature without leaving the city, Trehan Luxury Floors brings that dream alive. The 3BHK Sohna Road homes are designed around lush greenery and open air — a refreshing change in the urban landscape of Real Estate Gurgaon. It’s where morning walks, green views, and modern interiors all coexist beautifully.
ReplyDelete