अब है कछु करबे की
बिरिया,
आँखन से दूर निकर गई
निंदिया।
उनके लानै नईंयाँ आफत,
मौज मजे को जीबन काटत,
पीकै घी तीनऊ बिरिया।
अब है कछु करबे की
बिरिया॥
अपनई मन की उनको करनै,
सच्ची बात पै कान न
धरनै,
फुँफकारत जैसें नाग
होए करिया।
अब है कछु करबे की
बिरिया॥
हाथी घोड़ा पाले बैठे,
बिना काम कै ठाले बैठे,
इतै पालबो मुश्किल
छिरिया।
अब है कछु करबे की
बिरिया॥
कर लेयौ लाला अपयें
मन कौ,
इक दिना तो मिलहै हमऊ
कौ,
तारे गिनहौ तब भरी
दुफरिया,
अब है कछु करबे की
बिरिया॥