Tuesday, July 14, 2009

बुन्देलखण्ड की कजलियाँ


          आज अपयें बुन्देलखण्ड में कजली को त्यौहार बहुतईं जोर-शोर से मनाओ जात है। सबईं जनन को कजली की बधाइयाँ पहुँचैं। हमाओ बिचार ऐसो है कि बहुतई जनन को जा त्यौहार के बारै में पतई नईं हुईये। ऐसौ जासै है कि कायेसे अब न तौ कौनउ बताबै बारौ है और न आजकल के मोड़ा-मोडि़यन को इत्ती फुर्सत है कि बे सबईं बुन्देलखण्ड के लोक-त्योहारन के बारै में पतौ करैं।
          चलो कौनउ बात नईयाँ, जबईं जाग जाऔ तभईं सबेरो हो जात है।

का होत है कजलिया

          कजली बुन्देलखण्ड क्षेत्र में लोकपरम्परा-बिस्बास को त्यौहार मानौ जात है। पैलें तो अपन सब जनैं जा समझ लैओ कि जा कजली होत का है। देखो जाये तो जो त्यौहार विशेष रूप से इतै की खेती-किसानी से जुड़ौ है। जा त्यौहार में घर-मुहाल की बैइरनें (औरतें) हिस्सा लेती हैं। साउन के महीना की नौमी से जाकौ अनुष्ठान सुरू हो जात है। सबसें पैंला कितउँ बाहर मैदान से सबईं जनीं मट्टी खोद के लियातीं हैं। जा मट्टी कौ गा-बजा कै पूजन करतीं हैं और बाकै बाद में नाउन से छोयले के दोना मँगवा कै बामें जा मट्टी धर देतीं हैं। अब जामैं गेंहू और जौ को बो दऔ जात है। घर की जनीं रोजई सबेरे इन दोनन में दूध-पानी चढ़ाउतीं हैं, इनकी पूजा करतीं हैं। बाद में साउन महीना की पूनौ कों इन दोनन को सबईं बैइरनें अपने पासई के तलबा पै लै जातीं हैं। उतै पै सबईं कजली गीत गाउत भईं कजली खोंट लतीं हैं और सबईं दोनन को तलबा में सिरा देती हैं। खोंटीं भई कजलियाँ सबईं आदमियन-औरतन-बच्चन को बाँटी जातीं हैं और इनै आदर से सर-माथै पै लगाऔ जात है। कहूँ-कहूँ जई कजलियन को भुंजरियउ कहो जात है।
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          खेती-किसानी के अच्छे से होबै के लानै जो कजली को त्यौहार मनाऔ जात हतौ पर बाद में महोबा में जा दिना भई लड़ाई के बाद सें, एक ऐतिहासिक घटना होबै के बाद से जाये विजयात्सव के रूप में मनाऔ जान लगो है।
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का हतो किस्सा जा कजलियन कौ 
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          महोबे के राजा हतै राजा परमाल, उनकी बिटिया राजकुमारी चन्द्रावलि को उठाबै कै लानै दिल्ली के राजा पृथ्वीराज ने महोबे पै चढ़ाई कर दई हती। राजकुमारी उतै कै कीरत सागर ताल पै कजली सिराबै कै लानै अपनी सबईं सखी-सहेलियन के संगै जा रई हती। राजकुमारी कौ पृथ्वीराज उठा न पाबै जाकै लानै बा राज्य के बीर-बाँकुर आल्हा और ऊदल नै अपनौ अचम्भै में डारबै बारौ पराकरम दिखाऔ हतौ। इन दोउ बीरन के संगै-संगै चन्द्रावलि को ममैरौ भइया बीर अभई उरई सै जा पहुँचो हतौ। 
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          कीरत सागर ताल के पासई में होन बारी जा लड़ाई में अभई बीरगति को प्यारौ भऔ, राजा परमाल को एक बेटा रंजीतउ सहीद भऔ। कही तौ जउ जात है कि अभई जैसौ बीर सर कटबै के बादउ बहुतईं देर तक लड़ाई लड़त रऔ। बाद में आल्हा, ऊदल, लाखन, ताल्हन, सैयद राजा परमाल कौ लड़का ब्रह्मा, जगनिक जैसें बीरन ने पृथ्वीराज की सेना को उतै से हरा कै भगा दऔ। महोबे के पराक्रमियन की जीत होबै के बादईं राजकुमारी चन्द्रवलि ने और तमाम सारी जनियन ने अपईं-अपईं कजिलयन को खौंटो।
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          जई घटना के बाद सें महोबे के संगै-संगै पूरे बुन्देलखण्ड में कजलियन को त्यौहार विजयोत्सव के रूप में मनाऔ जान लगौ है।  जा पूरी घटना यदि सुनौ तो सबईं की आँखन में तरईंयाँ भर आउतीं हैं पर अब लगत है कि हमायै इतै के लोगन कै लानै जे सब बातैं बेकार की हो गईं हैं। कभउँ सात-सात दिना तक चलबै बारै जा कजली त्यौहार कौ रंग अब एकई दिना में सबकै मन से उतर जात है। 
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          चलौ कौनउ बात नईंयाँ फिरउ एक बार प्रेम से तौ बोल लैओ जय बुन्देलखण्ड।