Wednesday, June 11, 2008

बुन्देलखण्ड के लोक-देवता

पिछली पोस्ट में बुंदेलखंड के लोक-देवता की चर्चा आपके साथ की थी। उसमें लोक-देवताओं में लाला हरदौल लोक-देवता की चर्चा हुई थी। आज आपके साथ बुंदेलखंड के लोक-देवता के रूप में प्रतिष्ठित "मैकासुर" तथा "कारसदेव" के साथ-साथ अन्य ग्राम-देवताओं के बारे में आपको बताने का प्रयास होगा।

मैकासुर

मैकासुर को बुंदेलखंड क्षेत्र में पशु-रक्षक देवता के रूप में मान्यता प्राप्त है। इसी रूप में उनकी पूजा भी की जाती है। यद्यपि इनके बारे में किसी प्रकार का एतिहासिक वर्णन प्राप्त नहीं होता है पर फ़िर भी प्रत्येक माह की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को इनकी पूजा की जाती है। इस पूजा में विशेष रूप से मैकासुर से पशुओं की रक्षा करने की प्रार्थना की जाती है। इनके पूजा का स्थान एक चबूतरे पर ऊँचे से टीले पर कंगूरेदार होता है, जहाँ पूजा के समय प्रसाद तथा सफ़ेद रंग की ध्वजा(झंडा) चढाई जाती है। इनके प्रसाद को लेकर मान्यता है कि उसे वहीं समाप्त करना होता है, प्रसाद को घर ले जाने को भी नहीं मिलता है। मान्यता है कि मैकासुर के पूजन के बाद लोगों के जानवर, पशु सुरक्षित रहते हैं।

कारस-देव

कारस-देव की पूजा पशु-रक्षा के साथ-साथ झाड़-फूंक के लिए भी की जाती है। मैकासुर की तरह ही इनका भी पूजा का स्थान ऊँचे से टीले पर बना होता है। कारस-देव को एतिहासिक व्यक्तित्व मन गया है। ये हैहय वंशी राजाओं की परम्परा के स्वीकारे गए हैं। इनकी पूजा के समय भी प्रसाद को वहीं पर समाप्त करने का विधान है, प्रसाद को घर नहीं ले जाया जाता है। इनके प्रसाद में सफ़ेद ध्वजा, नारियल आदि चढाने का चलन है। इनकी पूजा के समय इनके नाम का दरवार लगता है, जिसमें लोग अपनी समस्या को सामने रखते हैं। एक व्यक्ति जिसे मन जाता है कि उस पर कारस-देव का प्रभाव आ जाता है वह भक्तों की समस्याओं को सुनता है तथा झाड़-फूंक के साथ उनका निदान भी करता है।

इन दोनों लोक-देवताओं के बारे में एक बात खास है कि होली के अवसर पर अहीर जाति के लोग इन दोनों लोक-देवताओं के समक्ष नृत्य करते हैं।

अन्य ग्राम-देवता

लोक-देवताओं के अतिरिक्त बुंदेलखंड में गाँव में कुछ प्रतीक ऐसे भी हैं जिन्हें धार्मिक रूप से ग्राम-देवताओं के रूप में मान्यता प्राप्त है। इनमें कुछ प्रतीकों को जातिगत रूप से मान्यता प्राप्त है पर उनकी पूजा-आराधना करने में किसी भी जाति विशेष को अधिकार प्राप्त नहीं है। इनमें घतोइया बाबा प्रमुख हैं।

घतोइया बाबा

घतोइया बाबा को वरुण देवता के रूप में मान्यता प्राप्त है। इनके भी चबूतरे पाए जाते हैं जो विशेष रूप से नदियों अथवा तालाबों के किनारे पाए जाते हैं। नदी- नाले पार करते समय विशेष रूप से इनका स्मरण किया जाता है। जल से सम्बन्धी काम करने वाली जातियाँ अथवा लोग इनकी पूजा विशेष रूप से करते हैं। इनमें मछुआरे, धोबी, ढीमर आदि आते हैं। इसके अतिरिक्त बारात जाते समय, किसी शुभ काम से निकलते समय नदी-नाले पार करते समय इनकी पूजा अथवा स्मरण सभी जातियों के लोग करते हैं। इनके प्रसाद में नारियल चढाने का चलन है।

इनके अतिरिक्त भी अनेक प्रतीकों को ग्राम-देवता के रूप में मान्यता प्राप्त है। ग्राम-देवता अपने-अपने ग्रामों के सीमित क्षेत्र में पूज्य हैं तथा ग्रामों के अनुसार अपने-अपने ग्राम-देवता भी स्थापित हैं।

बुंदेलखंड की संस्कृति अद्भुत एवं विविधताओं से भरी है। इसमें हर पल में अनेक-अनेक रंग भरे हैं। अभी इतना ही, समय-समय पर और बहुत कुछ आपके लिए सामने लाते रहेंगे।

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