Saturday, April 21, 2018

इतिहास की तंग गलियों में जनपद जालौन - 22

देवेन्द्र सिंह जी - लेखक 

गंगाधरराव ने कालपी सहित अपने सब राज में फिर से अधिकार तो कर लिया मगर उनकी परेशानी खत्म होने वाली नही थी। जवाहर सिंह जाट को जैसे ही गंगाधरराव द्वारा कालपी पर अधिकार करने की सुचना मिली उसने अपने दीवान दाना शाह को गंगाधरराव को सबक सिखाने के लिए इस तरफ भेजा। दानाशाह ने 20 दिसंबर, 1767 को उरई पर अधिकार कर लिया। 26 दिसंबर को उसने कोंच पर अधिकार किया और कोंच की जागीर माधो सिंह गूजर को दे दी। 30 दिसंबर को वह कोटरा पहुंचा जहाँ पर गंगाधरराव अपनी सेना के साथ उसका मुकाबला करने को आ गए थे। गंगाधरराव को कोटरा में पराजित होकर भागना पड़ा। अब दानाशाह ने बिलायाँ पर अधिकार करने की योजना बनाई। दानाशाह अभी पहाड़गाँव और बिलायाँ को जीतने की योजना बना ही रहा था कि उसको जवाहर सिंह की हत्या किये जाने की सूचना मिली जिसे उसके एक सैनिक ने ही मार डाला था। इस कारण मजबूर हो कर उसको भरतपुर लौटना पड़ा। जवाहर सिंह की मौत और दानाशाह के लौट जाने के कारण गंगाधरराव को फिर से जालौन में अपनी सत्ता स्थापित करने का मौका मिल गया। गंगाधरराव ने सबसे पहले माधो सिंह गुजर को सबक सिखाने का निश्चय किया जिसे दानाशह ने कोंच की जागीर दी थी। माधो सिंह गुजर ने मराठों की आधीनता स्वीकार करने में ही भलाई समझी।

वर्ष 1769 समाप्त होने को ही था की दानाशाह एक बार फिर गंगाधरराव के इलाके कोंच पर कब्जा करने के लिए चला। लेकिन इस बार स्थिति भिन्न थी। गंगाधरराव अकोढ़ी की तरफ से दानाशाह को घेरने चला। माधो सिंह गुजर जो अब गंगाधरराव के साथ था उसने सेसा और पहाड़गाँव की तरफ से जाटों की रसद सामग्री पर रोक लगा दी। मजबूर हो कर दानाशाह को कोंच को घेरा उठा कर भरतपुर लौट जाना पड़ा। इसके बाद तो जालौन पर फिर कभी जाटों के आक्रमण नहीं हुए क्योंकि घरेलू कलह से जाटों की शक्ति घट गई थी। इस प्रकार हम पाते हैं कि 1770 तक जालौन में फिर से मराठों ने अपनी स्थिति को मजबूत कर लिया था। 

गंगाधरराव बल्लाल खेर के समय में ही अंग्रेजों को कालपी में आने का मौका मिला। वर्ष 1775 में गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग्स ने पूना में सखाराम बापू को पत्र भेज कर सूचित किया कि कर्नल अप्टान को बुंदेलखंड से होकर पूना जाना है अत: वे बुंदेलखंड के अपने अधिकारियों को अप्टान को हर संभव मदद देने का निर्देश दें। पूना में इस समय दो दल थे। एक दल ने गंगाधरराव को लिखा कि वे अपने इलाके से निकलते समय अंग्रेजी सेना के लिए कोई रुकावट न पैदा करें और मदद करें। दूसरा गुट नहीं चाहता था कि अंग्रेजी सेना बुंदेलखंड में उनके क्षेत्र से होकर पूना जाय। कर्नल अप्टान 9 नवंबर, 1775 को अपनी फ़ौज के साथ कालपी पहुंचा। गंगाधरराव ने इस फ़ौज का विरोध न करने का निर्णय लिया अत: कालपी में गंगाधरराव ने अप्टान का स्वागत किया और फ़ौज के लिए रसद आदि का इंतजाम किया। अप्टान आराम से पूना पहुंच गया। अंग्रेजों के इस जनपद में आने की यह पहली घटना थी।

गंगाधरराव के समय में ही उनका अंग्रेजों से युद्ध भी हुआ। बम्बई में फ्रांसीसियों और कंपनी सरकार में चूल बन्दरगाह को लेकर युद्ध की स्थिति पैदा हो गई। अत: कंपनी सरकार ने वर्ष 1778 में एक फ़ौज तैयार करके उसको कालपी होकर बम्बई पहुचने को कहा। इसमें अंग्रेजों की यह नीति भी थी कि वे बुंदेलखंड से भलीभांति परचित होना भी चाहते थे। लेकिन अब पूना सरकार और गंगाधरराव खुद नही चाहते थे कि कंपनी सरकार की फ़ौज कालपी होकर बंबई जाय। अंग्रेजों ने लेसली को इस सेना की कमान दी। मई 1778 में लेसली सेना के साथ कालपी के दूसरी तरफ यमुना नदी के तट पर फ़ौज के साथ आ गया। गंगाधर ने अपने दूत नन्द कुमार को लेसली के कैम्प में इस पत्र के साथ भेजा कि वे अंग्रेजी सेना को कालपी होकर न जाने का अनुरोध करें। लेकिन लेसली ने यह अनुरोध ठुकरा दिया। अगले दिन फुल्रेरेटन के दस्तों ने कालपी शहर और किले पर अधिकार कर लिया। मजबूर होकर गंगाधरराव को अंग्रेजों से संधि करनी पड़ी। 

इस संधि की प्रमुख शर्तें ये थीं।
(1) अंग्रेजी सेना बुंदेलखंड से होकर ही जायगी
(2) सेना को उचित मूल्य पर रसद मिलेगी
(3) कालपी का किला इस संधि की गारंटी के तौर पर अंग्रेजों के पास तब तक रहेगा जब तक उनकी फ़ौज बुंदेलखंड से निकल नही जाती
(4) जब अंग्रेजी सेना छत्रपुर से आगे निकल जायगी किला गंगाधराव को वापस लौटा दिया जायगा।

कालपी से लेसली द्वारा गवर्नर जनरल हेस्टिंग्स को लिखा गया पत्र आपसे साझा करता हूँ।

The Honble Warren Hastings Esqs.
Gover General & Gentelmen of the Supreme Council Military Department.
Gentelmen,
I had the honour to address you on the 20th Inst. With the information of first division of this Detachment having passed the Jumna. The park of artillery, Magazin, stores & with two Battns; of 2nd Division and the Nabobs Cavalry, crossed a few days following and I have been delayed commencing my march from Calpee, by the negotiations the maratta Chiefs have been carrying on with me for the restablishment of peace. This day I have received their final acquiescence to my free passage through their country, their promised aid of provisions, for their faithful performance of which , I am to be attended by a person of rank , and to retain possession of the fort of Calpee , so long as it may be necessary for the convenience of my communication with these provinces…………
I have the Honor to be with the highest Respect .
Gentlemen
Your most obedient humble Servent
Head Quarters, Calpee,30th may,1778. SD.Mathew Leslie.

आज इतना ही, अगली पोस्ट तक तब तक इसका मजा लीजिए। धन्यवाद

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© देवेन्द्र सिंह  (लेखक)

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