Tuesday, May 1, 2018

इतिहास की तंग गलियों में जनपद जालौन - 24

देवेन्द्र सिंह जी - लेखक 

लक्ष्मीबाई तो खुद अभी कम उम्र की ही थी। अपने भाई को जालौन की गद्दी पर बैठाने पर तो सफल हो गई उसकी संरक्षिका भी बन गई पर राजकाज चलाने का कोई अनुभव नहीं था। चौदह वर्ष की लक्ष्मीबाई पर लोग अपना प्रभाव डालने लगे। राज के पुराने अनुभवी दीवान भाष्करराव को लक्ष्मीबाई का राजकाज में हस्तक्षेप पसंद नहीं था। राज्य में दो दल हो गए। एक लक्ष्मीबाई के साथ मजा उडाने वालों का दूसरा भाष्करराव के साथ। कुछ समय बाद जालौन में अज्ञात लोगों द्वारा दीवान भाष्करराव की हत्या कर दी गई (दीवान के नाम पर एक मोहल्ला भाष्करराव अभी भी जालौन में है)। अब मामला और बिगड़ गया। अराजकता के कारण जालौन राज की आर्थिक दशा खराब होने लगी। इस समय जालौन राज का क्षेत्रफल लगभग 100 वर्ग मील तथा जनसंख्या 1,80,000 थी। राज्य का रेवन्यू 6 लाख रुपए वार्षिक था। राज की सेना में 2000 पैदल सैनिक तथा 1500 घुड़सवार थे। बदइन्तजामी के कारण राजस्व की वसूली घटती चली गई मगर खर्चे में कोई कमी नहीं हुई। राज का खर्चा साहूकारों से कर्ज लेकर चलाया जाने लगा। राज की जमीन साहूकारों के पास गिरवी रखी जाने लगी। 1837 में राज्य में भयंकर अकाल पड़ा। हजारों लोग भूख और बीमारी के चलते मरने लगे। जान बचाने के लिए हजारों लोग मालवा की तरफ पलायन कर गए। खेत खलिहान सब खाली। टैक्स की वसूली नाम मात्र की रह गई।

मराठों के समय में जनता पर मालगुजारी टैक्स बहुत ज्यादा था। यूरोप में किसानों पर जो टेक्स लगता था जिसको वहाँ रेंट कहा जाता था वह यहाँ पर नहीं था। यहाँ पर टेनेन्ट की सालाना आमदनी निश्चित नहीं थी। उनके पास सरप्लस जैसा कुछ नहीं था क्योंकि जो कुछ भी पैदा होता था वह सब राज ले लेता था। मराठा सरकार लगान या मालगुजारी कनकूत से लेती थी। कन माने अनाज और कूत माने अनुमान। इस कनकूत सिस्टम में पूरी पैदावार में से थोडा सा अनाज बीज के लिए छोड़ कर बाकी सब सरकार के अधिकार में ले लिया जाता था। जुलाई माह में जमीदारों को एक सफा सम्मान में दिया जाता था इसके अलावा 20-25 बीघा भूमि टेक्स फ्री प्रदान की जाती थी। गाँव में लौट कर जमीदार 2 या 3 रुपया प्रति बीघा के हिसाब से जमीन अपने किसानों को दे देता। लेकिन यदि कनकूत के समय फसल प्रति बीघा के मूल्य से अधिक की हुई तो वह सरकार की होती। अगले वर्ष फिर जब कनकूत का समय आता तो किसान पहले से कुछ अनाज चोरी करके रखने की कोशिश करता जिससे पेट भर सके। 

जालौन के डिप्टी कमिश्नर टरनन ने अपनी एक रिपोर्ट में 1863 में लिखा - under the Mahratta Government there was a heavy “land tax,” but rent, as understood in Europe, did not exist. There was no certain profit to tenant yearly issuing from the land; there was no surplus, for the Government grasped all. The Mahratta Government collected the land tax by “Kunkoot”, that is to say, that after allowing the cultivator a small portion of the crop for seed, it seized the remainder, and sold it in the market at whatever it could fetch. The zemindars of a village, in July, were presented with a Turban by the head government official, and besides, enjoyed about 20 or 25 beegahs each of land free. They went back to their villeges and gave out nominal leases at two or three Rs. per beegah; but if by “Kunkoot” the crop exceeded that sum in value per beegah so much more went to the profit of Government, for the cultivator was only left little more then sufficient grain for next sowings. The cultivator, again, as the time of “Kunkoot” or appraisement of crops approached, often concealed much of the crop, notwithstanding the custodians placed over his fields. The Government not only rack &rented but plundered him in every imaginable.

टेक्स की वसूली इतनी कम हो गई कि लक्ष्मीबाई के लिए कर्मचारियों का वेतन बाँटना मुश्किल हो गया। राज का बड़ा हिस्सा गिरवी रख कर किसी प्रकार काम चलाया गया। धीरे-धीरे कर्ज की रकम बढ़ कर ढाई लाख रुपये से ज्यादा हो गई। साहूकारों ने कर्ज देना बंद कर दिया। अब लक्ष्मीबाई ने अपनी गारंटी पर कर्ज दिलवाने के लिए बाँदा में नियुक्त पोलिटिकल एजेंट मि० फ्रेशर से प्रार्थना की। इन परिस्थितियों का कंपनी सरकार ने फायदा उठाया और 1838-39 में शासन में सुधार लाने के लिए जालौन का प्रबंध अपने हाथ में लेकर लेफ्टिनेंट डूलन को प्रशासक बना कर जालौन में भेजा। डूलन इससे पहले अवध में कार्यरत थे उनको रेवन्यू विभाग कार्य करने का अच्छा ख़ासा अनुभव था। डूलन को जालौन के राज से 2000 रु० प्रति माह वेतन देने को कहा गया। उनको अपने कार्य में सहायता के लिए चार सहायक भी मिले जिनको शुरू में राज से 200 रु० हर माह में मिलना था मगर बाद में बढ़ा कर 400 रु० प्रति माह कर दिया गया। मरता क्या न करता की स्थिति में हारकर लक्ष्मीबाई को फ्रेशर की सब बातें माननी पड़ी।

जालौन आकर डूलन ने सबसे पहले खर्च कम करने के लिए जालौन राज की सेना को भंग कर दिया। इससे जालौन में उनके बहुत से विरोधी हो गए। राज में दो दल तो पहले ही से थे। एक-दूसरे की इतनी शिकायतें आने लगी की डूलन के लिए जालौन में रह कर काम करना ही मुश्किल लगने लगा। डूलन ने राजघराने की चखचख से दूर रह कर काम करने के लिए अपना दफ्तर जालौन से उरई में शिफ्ट कर लिया। तभी से जिले का मुख्यालय उरई में है। डूलन ने जहाँ पर अपना कार्यालय स्थापित किया था वह स्थान बाद में डूलनगंज मोहल्ले के नाम से जाना जाने लगा फिर बिगड़ कर डोलनगंज हो गया। आजकल यह शिवपुरी के नाम से एक मोहल्ला है। डूलन के समय में ही गवर्नर जनरल लार्ड आक्लेंड दतिया राज का भ्रमण करते हुए नदीगांव से होते हुए उरई आए थे। उनके पास प्रान्त के लेफ्टिनेंट गवर्नर का चार्ज था। इस दौरे में गवर्नर जनरल के साथ उनकी बहिन एमली भी थी जो प्रतिदिन की डायरी भी लिखती थी। लाट साहब 20 जनवरी, 1840 दिन इतवार को नदीगांव से उरई आए थे। एमली ने लोगों के नाम का पहला शब्द ही लिखा है जैसे गवर्नर जनरल के लिए अंग्रेजी का जी शब्द, आइये उस दिन की डायरी के शब्द आपसे साझा करता हूँ।

Oorei, Sunday.
We met the little Jhetour rajah this morning : such a pretty boy of twelve years old, and Mr. F. the agent has him constantly with him and teaches him to thinkfor himself, and to be active and has got him to live less in the zenana than most young natives, and he seems lively and intelligent. We halt here a day, that G. may review the new local corps that has been raised in this boy's territories; they were drawn up in our street this morning, and are fine-looking people. Lord Jocelyn has filled up the day with shooting; there are quantities of deer about, and he had the good luck to kill one.
Tuesday.

We halted at Oorei yesterday, that G. might review those troops, who made a wonderful display, considering that eight months ago they were all common peasants; but natives are wonderfully quick under sharp Europeans and Captain B., who has been fighting in Spain and is very active, has just hit their fancy. He goes about in a sort of blue and gold fancy dress, and puts himself into a constant series of attitudes.The weather is so dreadfully hot, much worse than a January in Calcutta, but they say it is always so in Bundelcund. G. and I are quite beat out of riding any part of the march, even before seven o'clock, but F. still rides.She and G. have gone on arguing to the end about the tents. He says, he should like before he gets into his palanquin, to make a great pyramid of tent pins, and put the flagstaff in the centre, with the tents neatly packed all round, and then set fire to the whole. He thinks it would be an act of humanity, as it would be at least a year before they could be replaced, so that nobody, during that time, could undergo all the dis comfort and bore he has undergone. She declares it is the only life she likes, never to be two days in the same place; just as if we ever were in' a place?

इस डायरी से पता चलता है की एमली ने जालौन की स्पेलिंग बिलकुल अलग लिखी है। जालौन को जैसा सुना उसी अनुसार लिखा है। दूसरी बात यह भी पता चलती है की जालौन के राजा गोविंदराव की उम्र उस समय लगभग 12 वर्ष की थी। दूसरी बात यह पता चलती है की बुंदेलखंड लीजन नाम की फ़ौज जो झाँसी और जालौन की रक्षा के लिए खड़ी की गई थी और जिसका मुकाम उस समय कालपी में था उसकी परेड का निरीक्षण भी गवर्नर जनरल ने किया था। यहाँ रुकने पर उन्होंने हिरन का शिकार भी किया था। लेकिन सरकारी दौरा रिपोर्ट में उरई को बड़ा गंदा स्थान बतलाया गया था।
डूलन को अभी जालौन का प्रशासन सभाले हुए दो ही साल हुए थे कि राजा गोविंदराव की जालौन में मौत हो गई। लक्ष्मीबाई ने अब गुरसराय के राजा केशवराव को गोद लेकर जालौन की गद्दी पर बैठाने का प्रयास किया। केशवराव ने भी जालौन पर अपना दावा पेश किया परन्तु कंपनी सरकार ने किसी की भी बात नही मानी। वैध उतराधिकारी के न होने का कारण बता कर जालौन राज को कंपनी के राज में शामिल कर लिया गया। वैध वंशज न होने की बात बिलकुल गलत थी। यदि अंग्रेज चाहते तो नाना गोविंदराव की नातिन ताईबाई जो जालौन में ही रहती थी, के पुत्र को जालौन की गद्दी दे सकते थे। परन्तु यह नहीं किया गया और जालौन राज का कंपनी राज में विलय कर लिया। जालौन राज परिवार के आश्रितों के लिए 70000 रु० की व्यवस्था पेंशन के रूप में की गई।

आज इतना ही।


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© देवेन्द्र सिंह  (लेखक)

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