देवेन्द्र सिंह जी - लेखक |
महाभारत के काल में हम पाते हैं कि यहाँ पर चेदियों
का शासन था। दमघोष के पुत्र शिशुपाल ने इस क्षेत्र से कुरु वंश का शासन समाप्त करके
चेदि राज को पुन: स्थापित कर लिया। यह वही शिशुपाल है जिसका वध श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर
के राजसूर्य यज्ञ में किया था। इस समय बहुत से प्रमुख चेदियों के बारे में पढ़ने को
मिलता है। चेदिराज उपरिचर, वसु की पत्नी गिरिका का भाई वसु का सेनापति था नकुल की पत्नी करनमति चेदि थी।
पांडवों ने बनवास का बहुत समय चेदियों के यहाँ व्यतीत किया था। भीम की पत्नी चेदि थी।
दमघोष, शीशपाल, धृष्टकेतु, सुकेतु, शरभ, आदि सब चेदि ही थे।
शिशुपाल की माता श्रुतिकीर्ति और कुंती आपस में बहिनें थीं। इनके भाई बासुदेव थे। वसु
के चार पुत्रों के अलावा निषाद स्त्री से एक पुत्र और एक पुत्री थी। पुत्र ने अपने
बाहुबल से मत्स राज कायम किया लेकिन कन्या अपने निषाद परिवार के साथ यमुना के किनारे
ही रही जो कुरु राज का क्षेत्र था। शांतुन की पत्नी सत्यवती का जन्म इसी परिवार में
हुआ था। वेदव्यास, चित्रगुप्त,
और विचित्रवीर सत्यवती के ही पुत्र थे। महाभारत के युद्ध में चेदि पांडवों
के साथ रहे उनके राजा शिशुपाल का उतराधिकारी धृष्टकेतु ने अपने भाई शरभ के साथ पांडवों
का साथ दिया था। इसी आधार पर ई०जे०रेपसन ने कैम्ब्रिज हिस्ट्री आफ इंडिया भाग
प्रथम में लिखा कि महाभारत के युद्ध के बाद भी जालौन के क्षेत्र में चेदि राज बना रहा।
महाभारत के बाद चेदियों के बारे में कुछ ज्यादा पता
नहीं चलता है। पुराण भी इस बारे में मौन हैं। लेकिन ईसा से ६००वर्ष पूर्व उत्तरभारत
के सोलह जनपदों का जब उल्लेख मिलता है तब उसमें चेदि राज का उल्लेख है। पोलिटिकल
हिस्ट्री आफ एंसियंट इण्डिया में एच०सी०राय लिखते हैं कि इस काल में यहाँ पर वितिहोत्रासों
का अधिकार था। ये कौन थे इसके बारे में ज्यादा कुछ नहीं मिला। लेकिन ईसा पूर्व सातवी
सदी के प्रारंभ से जालौन का इतिहास स्पष्ट और निश्चित हो जाता है। इसके पूर्व प्रत्येक
घटना अस्पष्ट और काल निर्णय अनिश्चत है।
जैन और बौद्ध धार्मिक ग्रंथों से पता चलता है कि इस
युग में समस्त उत्तरी भारत में में १६ राज्य थे। इस युग की प्रमुख घटना मगध का उत्कर्ष
है। बिम्बसार मगध की महानता का वास्तविक संस्थापक था। उसका उतराधिकारी अजातशत्रु फिर
उदयन, जो उसका पौत्र था, का विवरण मिलता है। उदयन के उतराधिकारी नन्दिवर्धन और महानन्दीन
थे। कहा जाता है कि महानन्दीन के अवैध पुत्र महापदमनन्द ने नन्द वंश की स्थापना की।
उसी ने मगध की सीमाओं का विस्तार किया। इतिहासकारों का मानना है कि ईसा के चार सौ वर्ष
पूर्व जालौन का क्षेत्र महापद्मनन्द के अधिकार में आया, लेकिन राज्याभिषेक के वर्ष
के बारे में इतिहासकारों में मतभेद है। इतिहासकार एफ०ई०प्रगेटीयर के अनुसार ३८२ बी०सी०
आर०के०मुकर्जी के अनुसार ३६४ बी०सी० और एच०सी०राय चौधरी के अनुसार यह तिथि ३५४ बी०सी०
है। पुराणों में इसके बारे में बहुत अच्छा नहीं लिखा गया है। भगवत पुराण की एक टीका
के अनुसार इसके पास दस पदम सेना तथा उतनी ही संपति थी। इसी कारण इसको महापदम कहा गया
है। इसने सबको गद्दी से हटा कर एकछत्र राज्य कायम किया। इसके राज्य की सीमाएं हिमालय
से विन्ध्याचल तक थीं। अतः जनपद जालौन भी इसके राज में रहा होगा। इसको उत्तरी भारत
का पहला सम्राट भी कहा जाता है। मत्स्य पुराण के अनुसार यह ८८ वर्ष तक जीवित रहा। वायु
पुराण में इसके २८ वर्ष तक शासन करने की बात कही गई है। इससे अनुमान लगता है कि ईसा
पूर्व ४२९ में इसकी मृत्यु हुई। इस वंश के ८ राजाओं के बारे में पुराणों में उल्लेख
है। इसके पुत्र घनानंद के बारे में कहा गया कि वह भी बहुत शक्तिशाली था लेकिन साथ ही
बहुत क्रूर तथा लोभी भी था। जनता इससे घृणा करती थी। ३२१ ई०पू० तक नन्द वंश के शासक
इस क्षेत्र को अपने अधिकार में किए रहे। इस वंश के अंतिम नरेश घनानंद को चन्द्रगुप्त
मौर्य ने चाणक्य की मदद से ३२१ बी०सी० में सिंहासनचुत्य कर दिया और चाणक्य की मदद से
मौर्य वंश की स्थापना की।
भगवती-सूत्र में मोरियपुत्व का उल्लेख मिलता है। इनकी
राजधानी पिप्लीवाना में थी। वहाँ के निवासी मोरिय (मौर्य) या मोरिय्पुत कहलाते थे।
मोरिय नामक स्थान से संबंध होने के कारण चन्द्रगुप्त मौर्य कहलाया। इतिहासकारों ने
इसको शाक्य मूल क्षत्रिय वर्ण का कहा है। इसने अपनी वीरता और चाणक्य की मदद से विशाल
साम्राज्य खड़ा किया। चन्द्रगुप्त के दरबार में रह रहे यवन राजदूत मेगस्थनीज ने इंडिका
पुस्तक में इसके राज की सीमा पूर्व उत्तर में हिमाड्स (हिमालय) पर्वत, दक्षिण व पूर्व में समुद्र और पश्चिम
में सिन्धु बतलाई है। इससे पता चलता है कि जालौन भी मौर्य साम्राज्य का अंग था। वायु
पुराण के अनुसार चन्द्रगुप्त ने ई०पू०२९८ में राज्य अपने पुत्र बिन्दुसार (२९८-२७३)
को सौंप कर गृह त्याग दिया। जैन अनुश्रुतियों के अनुसार वह उपवास और तप करके मृत्यु
को प्राप्त हुआ। बिन्दुसार ने अपने पुत्र अशोक को अवन्ति का शासन सौंपा जिसकी राजधानी
उज्जैन और उप राजधानी विदिशा थी। इस समय जालौन अशोक के अधीन था। अशोक (२७३-२३३) ही
बिन्दुसार के बाद साम्राज्य का उतराधिकारी हुआ। गजानन माधव मुक्तिबोध की पुस्तक भारत
इतिहास और संस्कृति के अनुसार अशोक की मृत्यु के बाद मौर्य शासक अपने राज के पतन
को रोक नही सके, प्रतापी मौर्य साम्राज्य सदा के लिए अस्त हो
गया। अंतिम मौर्य सम्राट बृहद्रथ था। वह एक कमजोर शासक था। इसका फायदा उठा कर उसके
सेनापति पुष्यमित्र नेबृहद्रथ की हत्या करा कर मौर्य साम्राज्य का अंत कर दिया। इस
अध्ययन के आधार पर कहा जा सकता है कि मौर्यों का शासन इस क्षेत्र (जालौन) में १३७ वर्षों
(३२१-१८४ बी०सी०) तक रहा था।
आज यहीं तक।
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© देवेन्द्र सिंह (लेखक)
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सार्थक आलेख.
ReplyDeleteआभार
Deleteआपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन आधुनिक काल की मीराबाई को नमन करती ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...
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