देवेन्द्र सिंह जी - लेखक |
चंदेलों के अति महत्वपूर्ण राजा यशोवर्मन का पुत्र
परमारदिदेव (1165-1202) था।
इसको हम लोग राजा परमाल भी कहते हैं। लेखन में सुविधा के लिए मैं भी उसको परमाल ही
लिखूंगा। तो परमाल का इतिहास वहीं से शुरू करें जहाँ से उसका अपने जिले (जालौन) से
संबंध है।
परमाल का संबंध अपने जिले से उस समय विशेष रूप से
जुड़ा जब उसने वासुदेव की पुत्री,
माहिल की बहिन मल्हना से विवाह कर लिया। यहाँ तक तो ठीक था मगर उसने
एक और काम किया। वासुदेव की दो अन्य पुत्रियों, देवला तथा तिलका
का विवाह अपने दो वीर बनाफर सरदारों दस्यराज और बच्छराज से करवा दिया। मामला यहीं से
बिगड़ गया। वासुदेव मन मसोस कर रह गया। चंदेलों के विशाल साम्राज्य के आगे उन्हीं की
एक छोटी जागीर का राजा किस बूते विरोध करता। विरोध का कारण यह था कि उस समय की सामाजिक
संरचना में बनाफर बहुत नीचे कुल के माने जाते थे और परिहारों की लड़कियां बनाफारों के
घर व्याह कर जाएँ, यह मर्यादा के खिलाफ था। लेकिन चंदेलों के यहाँ बनाफरों का बड़ा मान
था। इसके दो कारण थे, एक तो यह था कि चंदेलों की प्रथम महिला जिससे यह वंश चला उसका
प्रसूतिकाल केन नदी के किनारे में चन्द्रमा के कहने से व्यतीत हुआ था। मान्यता यह है
हेमवती का वह पूरा समय एक बनाफर परिवार में ही व्यतीत हुआ था। इस कारण बनाफरों के प्रति
चंदेलों के दिल में हमेशा से सॉफ्ट कार्नर रहा। दूसरा बनाफरों का वीरता में कोई जवाब
नहीं था। इन कारणों से दस्यराज और बच्छराज परमाल को बहुत प्रिय थे और इसी कारण उसने
इन दोनों की शादी वासुदेव की पुत्रियों से करवाई थी। परमाल का इरादा अपने ससुर का अपमान
करने का कतई भी नहीं था मगर वासुदेव के पुत्र माहिल को यह सब बहुत ही अपमानजनक लगा।
माहिल तब छोटा था इसलिए मन मसोसकर कर रह गया मगर इस अपमान को वह कभी भी भुला नहीं पाया।
यहाँ पर बनाफरों के बारे में कुछ जानने की कोशिश करते हैं कि इतिहास इनके बारे में
क्या कहता है। कनिष्क के समय में बनारस का क्षत्रप बनस्पर था बाद में यह महाक्षत्रप
भी बना था। उसके वंशज ही बुंदेलखंड में भाषा की त्रुटि के कारण बनाफर कहलाने लगे। चंदेलों
के समय में अपनी वीरता तथा युद्ध कौशल के कारण यर प्रसिद्ध हुए परन्तु समाज में नीचे
स्तर के माने जाते थे। आल्हा खण्डकाव्य में इनको जगह-जगह ओछी जात बनाफर क्यार
से संबोधित किया गया है। डा०अयोध्या प्रसाद पाण्डेय के अनुसार बनाफर अपना स्त्रोत्र
चिंतामणि वेन्य से मानते हैं। जिनके साथ चन्द्रमा के आदेशानुसार हेमवती ने केन नदी
के किनारे निवास किया था और पुत्र को जन्म दिया था। बुंदेलखंड में इनकी बोली बनाफरी
कहलाती है।
समय गुजरता रहा वासुदेव की मृत्यु के बाद वासुदेव का पुत्र माहिल जिगनी
का राजा हुआ। वह परमार को कभी माफ़ नहीं कर सका और उस परिवार से दूर रहने के लिए उसने
बेतवा के इस पार एक छोटी सी जगह उरई में रहने का निश्चय किया। उरई में ही क्यों किया?
किले हमेशा सुरक्षा के हिसाब से बनाए जाते हैं, इस कारण किसी पहाड़ी या ऊँचे जगह पर
ही मिलते हैं। बेतवा के इस तरफ कहीं पहाड़ी ही नहीं है, केवल दो ही ऊंचे स्थान इस तरफ
थे और दोनों ही जगहों पर देवियाँ विराजमान थीं। अंत में उरई में ही रहने का निश्चय
माहिल ने किया। चारों तरफ जमीन ही जमीन, चाहे जहाँ जो कुछ बना लो मगर अगर किला या चाहे
छोटी सी गढ़ी ही क्यों हो वह अन्य लोगों के घरों से कुछ ऊँची न हो तो राजा या जमीदार
ही काहे बात के। अतः मिट्टी खोद-खोद कर एक स्थान पर जमा करके एक जगह को ऊँचाई दी गई।
बहुत मिट्टी की खुदाई की गई। जहाँ से मिट्टी खोदी गई वहाँ पर जब गहराई होने लगी, तब
यह विचार आया कि खुदाई कुछ इस तरह से हो कि वह एक तालाब का रूप ले ले। इस तरह से जो
तालाब बना उसको हम सब माहिल का तालाब कहते हैं। मेरी मान्यता यह है कि पहले तालाब बना
किले की तामीर बाद में हुई होगी। किले के बनाने में पानी की बहुत जरूरत पड़ती है। इतना
पानी कहाँ से आता? सब कुछ हो जाने के बाद भी उरई में पीने के पानी की विकराल समस्या
थी। अधिकांश कुओं का पानी खारा था। पीने के लिए मीठा पानी चाहिए था। बड़ी खोज के बाद
उरई से दस-बीस मील पर खोदने पर एक जगह मीठा पानी मिला। माहिल ने वहाँ पर एक बाग़ लगवा
कर एक मनोरम स्थान निर्मित किया। कुआं बड़ा नहीं था, छोटा ही था अतः कुईया कहलाई। बुंदेलखंड
में छोटे कुंए के लिए यही संबोधन है। अभी भी वह स्थान कुइंया ग्राम के नाम से ही जाना
जाता है। किसी ने सोचा कि ग्राम का नाम कुइंया क्यों है? हर स्थान का एक इतिहास होता
है।
तो अब माहिल के क्रियाकलापों को जानने से पहले यहाँ
पर एक विश्राम। कथा बड़ी है, आराम से साथ-साथ चलिए। फिर वही बात कहना चाहता हूँ कि आपकी
प्रतिक्रिया, सुझाव और मेरी गलतियों पर आपकी आलोचनात्मक टिप्पणी का स्वागत है। और अगर
ठीक लग रहा है तो वह भी बतलाइए। धन्यवाद।
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© देवेन्द्र सिंह (लेखक)
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Sengar vansh k bare me kuch jankari dijiye sir
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