देवेन्द्र सिंह जी - लेखक |
यशोधर्मन के बाद हर्षवर्धनने इस क्षेत्र में राज्य
किया। हर्षवर्धन के समय में चीनी यात्री ह्वेनसांग भ्रमण करते हुए भारत आया था। आधुनिक
बुंदेलखंड को उसने चि-चि-टो लिखा है। इतिहासकारों का मानना है कि चि-चि-टो जुझौती या
जैजाकभुक्ति ही है। उसके अनुसार इस क्षेत्र की भूमि उपजाऊ है। यहाँ का राजा एक ब्राह्मण
था जो बौद्ध धर्म को मानने वाला था। छठवी शताब्दी में एक परिव्राजक राजा हस्तिन के
भी यहाँ राज करने की बात कही जाती है। सातवी सदी के मध्य तक का यही इतिहास जालौन का
मिलता है।
आठवी सदी में जालौन के क्षेत्र में गुर्जर-प्रतिहारों
का राज कायम हुआ जब वत्सराज प्रतिहार के पुत्र नागभट द्वितीय ने काफी बड़े भाग को जीत
कर कन्नौज को अपनी राजधानी बनाया। इस प्रकार अब जालौन प्रतिहारों के आधीन हो गया। लेकिन
809 में दक्षिण
के राष्ट्रकूट राजा गोविन्द द्वितीय ने प्रतिहारों को हरा दिया। कहा जाता है कि यह
लड़ाई कालपी के पास हुई थी। प्रतिहारों कुछ समय बाद ही फिर से अपने हारे हुए इलाके पर
अधिकार कर लिया। नागभट्ट के बाद रामभट्ट और उसके बाद 836 में
भोज गद्दी पर बैठा। भोज के आदि बराह के सिक्के इस क्षेत्र में मिलने
से यह कहा जा सकता है कि जालौन भी भोज के राज का अंग था। भोज का उत्तराधिकारी महेंद्र
पाल (885-910) हुआ। उसके राज की सीमा हिमालय से विन्ध्याचल तक
थी अतः जालौन का क्षेत्र भी उसके राज का अंग रहा ही होगा। गुर्जर और प्रतिहार जालौन
में शांति से राज नहीं कर पा रहे थे। उनको राष्ट्रकूटों और कलचुरी राजाओं का सामना
समय-समय पर करना पड़ता था। यही नहीं चंदेलों का भी उदय हो रहा था वे अपनी शक्ति को बढ़ा
रहे थे और कुछ ही समय में वे इस क्षेत्र के मालिक बन गए। अतः चंदेलों के विषय में जानकर
फिर उनके राज कायम करने के बारे में चर्चा करें तो तारतम्य बना रहेगा।
चन्देलों के विषय में एक जनश्रुति है कि काशी के गहडवाल
राजा इन्द्रजीत के पुरोहित हेमराज की 16 वर्षीय रूपवती पुत्री हेमवती एक समय रात्रि में
सरोवर में स्नान कर रही थी। उसके रूप पर मोहित होकर चन्द्रमा ने जबरजस्ती उसके साथ
संभोग किया। क्रोधित होकर जब हेमवती चन्द्रमा को शाप देने लगी तब चन्द्रमा ने उससे
कहा कि उसको क्रोधित होने की जरूरत नहीं है क्योंकि उससे जो पुत्र होगा वह बड़ा प्रतापी
होगा। वह केन नदी के किनारे आसू नामक गाँव में प्रसव कराने और फिर खजुराहो में जाकर
रहे। प्रसवकाल समाप्त होने पर हेमवती ने एक पुत्र को जन्म दिया और चन्द्रमा के नाम
पर उस पुत्र का नाम चन्द्रवर्मन रखा।
इतिहासकार रसेल का मत है कि चन्देल संभवतः गहड्वालों
की एक शाखा थे उनका चन्देल नाम चंदेरी (मध्य प्रदेश में एक स्थान) से बना। कुछ इतिहासकारों
ने चंदेलों का प्रथम पुरुष नन्हुक को माना है।
अब आगे बढ़ते है। इसमें किसी को कोई शक नहीं है कि
प्रारंभिक चन्देल राजा परिहारों के सावंत थे और उनको कर देते थे। इस वंश के प्रमुख
राजाओं में जयशक्ति, रहिला, हर्ष, यशोवर्मन और धंग का
नाम लिया जाता है। हर्ष के समय में चंदेलो ने अपने को बहुत मजबूत स्थित में कर लिया
था। एक समय कन्नौज की गद्दी की दावेदारी में हर्ष ने महिपाल की मदद करके उसको कन्नौज
की गद्दी पर बैठाया। इस कारण इस क्षेत्र में हर्ष का दबदबा हो गया।
915 में राष्ट्रकूटों ने कन्नौज को
घेर लिया। साथ ही प्रतिहारों के कालिंजर के किले पर अधिकार भी कर लिया। 917 में राष्ट्रकूट तजा कृष्ण को दक्षिण लौटना पड़ा। हर्ष का पुत्र यशोवर्मन जो
अभी भी चंदेलों का सामंत था ने प्रतिहारों की मदद करके राष्ट्रकूटो द्वारा विजित प्रदेशों
पर पुनः प्रतिहारों की सत्ता स्थापित कर दी। लेकिन इस मदद के एवज में उसने कालिंजर
के किले पर अपना अधिकार कायम रखा। एहसान के तले दबे प्रतिहार भी चुप रह गए। इतिहासकार
एन०एस०बोस के अनुसार इस क्षेत्र और कालिंजर के किले के प्राप्त होने से चंदेलों की
शक्ति बहुत बढ़ गई। कहने को तो जालौन का क्षेत्र परिहारों का था परन्तु वास्तविकता में
यह चंदेलों के अधिकार में था। कुछ इतिहासकार यह भी कहते हैं कि चंदेलों ने परिहारों
की मदद की थी इस कारण उनको यह सब क्षेत्र और कालिंजर का किला उपहारस्वरूप मिला था।
चलिए कैसे भी हो चंदेलों को मिला, यह छोड़ कर आगे का
इतिहास किस गली में ले जाता है उसमें घुसें।
यशोवर्मन के राज की सीमायें उत्तर में यमुना नदी से
दक्षिण में नर्मदा नदी तक और पूर्व में काशी से पशिम में बेतवा नदी तक थी। यशोवर्मन
के दो रानियाँ थीं। एक नारायणी दूसरी पुष्पा। पुष्पा बड़ी धर्मात्मा थी। उसके धंग तथा
कृष्णपाल नाम के दो पुत्र थे। यशोवर्मन के बाद उसका पुत्र धंग गद्दीनशीन हुआ।
अभी तक चन्देल प्रतिहारों को मान्यता देते रहे थे
यद्यपि यह मान्यता नाममात्र की ही थी। लेकिन धंग को यह नाममात्र की मान्यता भी स्वीकार
नहीं थी, यही नहीं धंग ने कन्नौज पर आक्रमण करके विजयपाल को हरा कर सार्वभोम सत्ता
प्राप्त की। अब धंग पूरे बुंदेलखंड का अधिपति हो गया था। उसके समय (950-1002) में उसका भाई भाई कन्ह्प
इस क्षेत्र में शासन करता था। इस बात की पुष्टि दुधई और झाँसी के शिलालेखों से होती
है। धंग के समय में उसका राज पश्चिम में ग्वालियर, पूर्व में
वाराणसी, उत्तर में यमुना नदी और दक्षिण में मालवा तक था। धंग
के काल की मुख्य बात यह है कि इसके समय में ही भारत में मुसलमानों के आक्रमण भी हुए।
उसने सुबुद्दीन के आक्रमण के समय पंजाब के राजा जयपाल की मदद की। एक बार फिर धंग 1001
ई० में महमूद गजनवी के विरोध में आनन्दपाल की मदद को गया। धंग को दीर्घ
जीवनकाल मिला। सौ वर्ष की आयु होने पर धंग ने एक सन्यासी की तरह प्रयाग में गंगा-यमुना
के संगम में भगवान शिव में ध्यान लगाकर जल समाधि ले मृत्यु का वरण किया।
धंग का उत्तराधिकारी उसका पुत्र गंड हुआ। गंड के समय
में भी मुसलमानों के आक्रमण हुए। 1008 में महमूद गजनवी के आक्रमण का विरोध करने वालों
में गंड भी था। इसी कारण उसने गंड के कालिंजर और ग्वालियर के किलों पर आक्रमण भी किया
था पर अधिकार नहीं कर सका था और कुछ लूट का माल लेकर लौट गया। डा०ए०एल० श्रीवास्तव
के अनुसार चूँकि महमूद लौट गया था इस कारण जालौन का क्षेत्र चंदेलों के पास ही बना
रहा। कुछ इतिहासकारों का यह भी मत है कि महमूद के आक्रमण गंड के पुत्र विधाधर के समय
में हुए थे। यह भी सूचना मिलती है कि चंदेल राजाओं ने सीमा पार से तुर्कों के आक्रमण
को विफल करने के लिए एक हिन्दू संगठन भी बनाया था। एक और घटना इतिहास के पन्नों में
दर्ज है जिसके अनुसार 1022 में महमूद ने विद्याधर पर आक्रमण किया।
चन्देल सेना एक नीति के तहत पीछे हटती गई और बिना युद्ध किये कालिंजर तक पीछे आ गई।
महमूद इतने अन्दर तक जाकर युद्ध करने का जोखिम नहीं लेना चाहता था, अतः वापस लौट गया।
1030 से 1050 तक विधाधर का पुत्र विजयपाल यहाँ का राजा रहा। उसके समय में चंदेलों की शक्ति
घटने लगी थी। यह भी कहा जाता है जिन चन्देल राजाओं के नाम में वर्मन नहीं होता था उनके
समय में इनकी शक्ति कमजोर हो जाती थी। विजयपाल के पुत्र देववर्मन के समय में कलचुरियों
ने यहाँ धावा बोला और चंदेलों के का काफी बड़ा इलाका उनके हाथ से निकल गया। देववर्मन
के बाद उसका छोटा भाई कीरतवर्मन, उसके बाद शल्कवर्मन फिर जयवर्मन
उसके बाद पृथ्वीवर्मन राजा हुआ। पृथ्वीवर्मन के समय में चंदेलों ने फिर एक बार अपना
पुराना गौरव प्राप्त किया। इसके पुत्र मदनवर्मन ने कन्नौज और काशी के गहरवारों,
मालवा के परमारों पर विजय प्राप्त कर चन्देल राज की सीमाओं का विस्तार
किया। चंदेलों का अंतिम महत्वशाली राजा यशोवर्मन का पुत्र परिमारदिदेव था।
जालौन जिले
के इतिहास में परमालदेव का बड़ा वर्णन मिलता है। इनके बारे में ज्यादा ही लिखना पड़ेगा,
अतः अब बाद में।
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© देवेन्द्र सिंह (लेखक)
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