Wednesday, June 6, 2018

इतिहास की तंग गलियों में जनपद जालौन - 31

देवेन्द्र सिंह जी - लेखक 
पिछली पोस्ट से आपको पता चल गया होगा कि कालपी के भाग में अंग्रेजों ने किस प्रकार से शासन किया। अब देखे कि जालौन के मराठा राज पर 1840 में जालौन के राजा के मर जाने के बाद जब कंपनी सरकार ने अधिकार किया तब यहाँ पर किस प्रकार की व्यवस्था की और कौन-कौन से अधिकारी यहाँ पर रहे तथा उनके समय में क्या हुआ। जिले के रूप में भी जालौन जिले का गठन अंग्रेजों के जालौन पर अधिकार करने के बाद ही किया गया था अत: उसके बारे में भी चर्चा साथ साथ की करता चलूँगा। 1840 में गोविंदराव के मरने पर जब अंग्रेजो का यहाँ पर कब्जा हुआ तब उनको परगना उरई, जालौन, आटा और महोबा प्राप्त हुआ। इसको ही जालौन जिले के बनने का प्रथम चरण कहा जा सकता है। कोंच और कालपी पर अंग्रेजों का अधिकार पहले ही हो गया था मगर वे अंग्रेजों के बुंदेलखंड जिले में थे और उसका मुख्यालय बाँदा में था। 

यह पहले ही लिख चूका हूँ कि 1838 में डूलन यहाँ प्रशासक हो कर आए थे उनको ही गोविंदराव के मरने के बाद यहाँ भी कार्य करने दिया गया और वे उनका पद था सुपरिटेंडेड। इनके समय में ही झाँसी जिले का परगना मोठ को डूलन के अधीन 1838 में कर दिया गया था अत: यह कह सकते है कि मोठ को जालौन में शामिल कर दिया गया था। 1841 में जब अंग्रेजों ने चिरगांव की जागीर को जब्त किया तब उसको भी जालौन में शामिल किया गया। इससे 26 गाँव और जालौन को मिले। अंग्रेजों ने यहाँ कदम रखते ही जनता को लूटना शुरू कर दिया। वर्ष 1840 में कैप्टन डूलन ने यहाँ का बन्दोबस्त 4,13,839 रु० में किया। यह केवल एक वर्ष के लिए ही था। इन्ही महोदय ने 1841 से 1845 तक पांच वर्ष के एक बार फिर सेटेलमेंट किया और डिमांड बढ़ा कर 5,77,167 रु० कर दी। एक वर्ष के अन्दर ही 1,63,328 रु० बढ़ाने का कोई औचित्य नही था। 1843 में कैप्टन डूलन का यहाँ से स्थानांतरण हो गया।

डूलन के बाद 1843 में कैप्टेन रोज जालौन के सुपरिंटेंडेंट हो कर आए। इनका वेतन 1600 रु० प्रतिमाह था। डूलन को वेतन मराठा राज से दिया जाता था अत: उनके लिए 2000 रु० प्रतिमाह कंपनी ने निधारित किया था। इन्होने जालौन क्षेत्र का नया बन्दोबस्त किया। यह 1845 से 1850 तक पांच वर्ष के लिए था। इन्होने दो रेट रखे। साधारण भूमि की मालगुजारी रेट था 1-7-8 रु० प्रति एकड़ और कृषि योग्य भूमि के लिए 2-0-5 रु० प्रति एकड़। इलाके की पूरी डिमांड थी 4,95,739 रु०। रोज के समय ही 1843 में झाँसी राज्य का परगना गरौठा और दबोह Bundelkhand Legion फ़ौज के रखरखाव के लिए आने वाले खर्च की भरपाई के लिए कंपनी सरकार ने झाँसी राज से प्राप्त किये। दबोह और गरौठा दोनों परगनों को जालौन में शामिल कर दिया गया। रोज की मदद के लिए एक Unconvented Assistant की नियुक्ति भी की गई। 18 जनवरी 1844 को Gwalior Contingent के रखरखाव के लिए एक संधि के तहत ग्वालियर राज्य का परगना कछवाहाघार और भांडेर भी कंपनी सरकार को प्राप्त हुआ। इस तरह कछवाहाघार (माधोगढ), इंदुरखी परगना और मऊ-मिहोनी पर अंग्रेजों ने अधिकार करके जालौन में शामिल कर लिया। अब रोज के क्षेत्र और उत्तरदायित्व में इजाफा हो गया था अत: उनको सहायता करने के लिए 400 रु० प्रतिमाह पर दो सहायक और मिले। रोज के चार्ज में जितना क्षेत्र था जिसमे ने परगने भी शामिल कर लें तब पूरा बन्दोबस्त इस प्रकार था।

1-परगना जालौन रु०1,64,617
2-परगना कुनार रु० 86,437
3-परगना मोहम्मदाबाद रु० 1,38,422
4-परगना इटौरा-रायपुर रु० 1,06,253
5-परगना मोठ रु० 88,979
6-परगना महोबा - रु० 99,341
7-परगना गरौठा - रु० 1,13,178
8-परगना चिरगांव रु० 40,870
9-परगना दबोह - रु० 1,26,673
कुल योग रु० 9,63,968 बलाशाही

इसमें सिंधिया से प्राप्त कछवहाघर परगने का बन्दोबस्त शामिल नहीं है। कछवहाघार परगने का बन्दोबस्त बाद में रोज द्वारा ही किया गया था। ग्वालियर दरबार द्वारा अपना जो इलाका अंग्रेजों को दिया उसका मूल्य 5,04,806 रु० बतलाया था। रोज द्वारा किया गया बन्दोबस्त हर प्रकार से गलत अनुचित और ज्यादा था। जल्द ही इसमें छूट देने की आवश्यकता महसूस की जाने लगी। पूरी वसूली नामुमकिन थी, उस पर 1848-49 का सूखा भारी पड़ा। रोज कुछ करते इसके पहले ही 1849 में उनकी तरक्की हो गई और वे पंजाब चले गए।

रोज के जालौन से जाने के बाद 27 अप्रेल 1849 को कैप्टेन इर्श्किन ने जालौन के सुप्रिनटेनडेंट का कार्यभार ग्रहण किया। ये पहले बुंदेलखंड जिले (बाँदा) के भी अधिकरी रह चुके थे। कालपी और कोंच उस समय बुंदेलखंड जिले में ही थे अत: इस तरफ के क्षेत्र का इनको काफी ज्ञान था। इनके समय की मुख्य घटना जैतपुर राज्य को जालौन में शामिल करने की थी। 5 मई 1849 को जैतपुर के राजा की मृत्यु होने पर उनके कोई सन्तान न होने के कारण कंपनी सरकार ने जैतपुर राज को हडप कर अपने जालौन जिले के महोबा परगने में शामिल के लिया। इनके समय में ही 1853 में महोबा और जैतपुर को जालौन से निकाल कर हमीरपुर को दे दिया गया। और वहाँ से रेगुलेशन परगने कालपी और कोंच को निकाल कर जालौन में शामिल किया गया। जिसका बन्दोबस्त विलियम म्यूर द्वारा किया गया था जो इस प्रकार था। (म्यूर बाद में नार्थ-वेस्ट प्रोविन्सस के लेफ्ट. गवर्नर हुए थे)

कालपी- 77832-6-10 रु०
कोंच- 211391-4-9

इर्श्किन के कार्यकाल में ही 1854 में भांडेर, मोठ और गरौठा परगनों को झाँसी को लौटा दिया गया। इनके समय में रोज द्वारा किया गया बन्दोबस्त 1850 में समाप्त हो गया। अत: इन पर नया बन्दोबस्त करने का भार पड़ा। कहा जा सकता है कि इनके द्वारा किया गया बन्दोबस्त सबसे अच्छा था। इनके पहले खेतों के नक्शे आदि नही बनते थे। इन्होने जिले में पंजाब के पटवारी सिस्टम को लागु किया। इनके आधीन इस कार्य के लिए जो अधिकारी और कर्मचारी नियुक्त किये गए उनका विवरण इस प्रकार है।

1- तहसीलदार - 13
2- मुख्य सदर अमीन -1
3- अन्कान्वेंटेड सहायक - 8
4- व्यक्तिगत सहायक - 1 (मफिदारों की इन्क्वारी करने के लिए )

इर्श्किन द्वारा किया गया बन्दोबस्त 1850 में पूरा हुआ। यह 1850 से 1855 तक पांच वर्ष तक के लिए था। इस बन्दोबस्त में कालपी और कोंच शामिल नही था। इन्होने केवल 9 परगनों का ही बन्दोबस्त किया था। इनके द्वारा किया गया बन्दोबस्त इस प्रकार था।

पिछले बन्दोबस्त की जमा – 9,64,768 रु०
इर्श्किन द्वारा किए गए बन्दोबस्त की जमा – 9,87,955 रु०

दोनों जमा में 23,187 रु० का अंतर इस कारण है कि किसी परगने की जमा में कुछ कमी की गई थी और किसी में बढ़ोतरी की गई। कमी 11930 रु० की और बढ़ोतरी 35117 रु० की की गई थी। इनके द्वारा ही परगना माधोगढ, इंदुरखी और भांडेर का भी बन्दोबस्त किया गया था। इन की सरकारी डिमांड 4,41,612 रु० निश्चित की गई। सभी अंग्रेज अधिकारिओं का मुख्य कार्य कंपनी के खजाने को भरना ही था। ये भी कैसे पीछे रहते। जालौन जिसका बन्दोबस्त रोज ने 6,08,428 रु० में किया था और जिसकी वसूली ही मुमकिन नही थी उसको बढ़ा कर इन्होने 6,60,886 रु० कर दिया।


परन्तु इर्श्किन के कार्यकाल में यहाँ पर बहुत से ऐसे कार्य हुए जो जालौन के इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। उनपर चर्चा अगली पोस्ट में, धन्यवाद।


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© देवेन्द्र सिंह  (लेखक)
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