Saturday, May 19, 2018

इतिहास की तंग गलियों में जनपद जालौन - 26

देवेन्द्र सिंह जी - लेखक 

पिछली पोस्ट में आपने पढ़ा कि हार जाने के बाद जालौन नरेश नाना गोविंदराव को अंग्रेजों के कैम्प में हाजिर होना पड़ा। यह घटना 18 फ़रवरी 1804 की है जब नाना अपने सहायकों के साथ अंग्रेजों के कैम्प में हाजिर हुए थे। कूटनीति के चतुर खिलाडी अंग्रेजों ने नाना गोविंदराव की बड़ी खातिर की। बोर्ड आफ रेवन्यू (फ़ोर्ट विलियम) की 11 जनवरी 1805 की प्रोसीडिंग द जनरल ट्रेजरी एकाउंट आफ बुंदेलखंड  8 नवंबर 1803 से 1 मई 1804 से पता चलता है कि जब नाना कैम्प में पहुंचे तब उनको जिआफुत के रूप में 1000 र० तथा खिलअत (ड्रेस आफ आनर) के रूप में 5220-5-0 रु० मूल्य की पोशाक भेट में दी गई। चूँकि गोविंदराव ने पराजय स्वीकार कर ली थी इस कारण कंपनी सरकार ने वर्ष 1804 में उरई और मोहम्मदाबाद का इलाका नाना को वापस कर दिया मगर कालपी शहर, कालपी का किला और कालपी परगने पर अधिकार किये रहे। गोविंदराव से कहा कि यदि उनका आचरण और व्यवहार सरकार के प्रति ठीक रहता है तो वे अपने जीते हुए भाग से कालपी के बराबर का इलाका उनको लौटा देंगे। 23 अक्तुबर 1806 में बाँदा में नाना गोविंदराव और ईस्ट इंडिया कंपनी के मध्य एक संधि पर दस्तखत हुए जिसकी बातें संक्षेप में इस प्रकार थीं।

1- नाना गोविंदराव ईस्ट इंडिया के क्षेत्र पर कभी आक्रमण नही करेंगे और न उन राजाओं पर आक्रमण करेंगे जिनकी कंपनी सरकार से संधि है।
2- नाना गोविंदराव कालपी शहर, जिला तथा सूची में दर्शाए गए यमुना के किनारे स्थित रायपुर के पास के गांवों से अपने अधिकार त्याग देंगे।
3- नाना कंपनी सरकार द्वारा घोषित भगोड़ों को यदि वह उनके राज में आता है, पकड़ कर कंपनी सरकार को सौंप देंगे।
4- कंपनी सरकार नाना गोविंदराव को कालपी शहर, जिला और किले के मूल्य के बराबर का इलाका अन्य स्थान पर दे देगी।
5- नाना गोविंदराव बचे हुए अपने राज के स्वतंत्र राजा माने जायगें।
6- यदि गोविंदराव के संबंधी रिस्तेदार नाना के विरुद्ध कोई शिकायत करते हैं तो नाना का निर्णय ही अंतिम होगा।
7- पन्ना स्थित हीरों की खानों पर गोविंदराव का अधिकार पूर्ववत रहेगा।
8- नाना गोविंदराव उनके पूर्वजों, रिश्तेदारों के जो भी बाग़, बिठूर, दोआब, गंगा के किनारे बनारस, कालपी, रायपुर या किसी अन्य स्थान पर हैं तथा वे स्थान अब कंपनी सरकार के आधीन हैं उन सब पर गोविंदराव और उनके परिवारजनों का ही अधिकार रहेगा।
9- कालपी को छोड़ कर अन्य क्षेत्र जो बुंदेलखंड और सागर में नाना या उनके वंशजों के अधिकार में हैं वह उनके तथा उनके उतराधिकारियों के पास ही यथावत रहेगे
10- यह संधि जिसमे दस धाराएं हैं जिस पर गवर्नर जनरल के एजेंट कैप्टेन जान बेली और नाना गोविंदराव के प्रतिनिधि भाष्कर क्रष्णा राव ने ह्श्ताक्षर किये।

पी०जे०ह्वाइट ने सेटेलमेंट रिपोर्ट 1874 में लिखा कि संधि से कंपनी सरकार को कालपी किला शहर के अलावा कालपी के 62 गाँव तथा रायपुर के 14 गाँव जिनका राजस्व लगभग 76000 रु० वार्षिक था, प्राप्त हुए थे। बाद में इस संधि की धारा 4 के अनुसार ईस्ट इंडिया कंपनी ने गोविंदराव को कालपी परगने के 50 गाँव, खरका परगने के 16 गाँव, कोटरा के 36 गाँव तथा सैदनगर के 14 गाँव जिनकी सालाना जमा लगभग 145368 रु० बलाशाही थी वापस कर दिए। इस प्रकार वर्ष 1806 तक कालपी के 76 गाँव ईस्ट इंडिया कंपनी के पास आ गए थे। कंपनी सरकार ने जीते हुए इस पूरे इलाके को अपने नए जिले बुंदेलखंड, जिसका मुख्यालय बाँदा में था, में शामिल कर लिया। कंपनी सरकार ने गोविंदराव से जितने गाँव प्राप्त किए और जो लौटाए थे उनकी सूची मैं बाद में पोस्ट करूंगा। कालपी के बाद अंग्रेजो का अधिकार कोंच में हुआ था पहले उसकी चर्चा कर ली जाय।

पेशवा माधवराव को उत्तर भारत में एक बड़ी फ़ौज रखनी पड़ती थी जिसके सेनापति होल्कर और सिंधिया जैसे कमांडर थे। इस फ़ौज का खर्च उठाने में होल्कर को बड़ी परेशानी हो रही थी अत: पेशवा माधवराव ने वर्ष 1776 में उत्तर भारत में फ़ौज के रख रखाव के ऊपर होने वाले खर्च की भरपाई के लिए 275328 रु० की कोंच की जागीर अपने सेनापति इंदौर के तुकोजीराव होल्कर को प्रदान कर दी। होल्कर ने कोंच की अपनी इस जागीर को अपने आलमपुर परगने में शामिल कर लिया और इसकी आमदनी से फ़ौज का खर्च चलाने लगा। 1802 में पेशवा बाजीराव द्वितीय और ईस्ट इंडिया के मध्य जो संधि हुई उसको बहुत से मराठा सरदारों ने पसंद नही किया था। जसवंतराव होल्कर भी अंग्रेजों के विरोध में था। जसवंतराव होल्कर के विरोध को दबाने के लिए कंपनी सरकार 1804 में एक फ़ौज भेजने का निर्णय लिया। इस समय होल्कर और सिंधिया में आपस में मनमुटाव था सबके अपने अपने स्वार्थ थे अत: होल्कर को अकेले ही कंपनी की फ़ौज का मुकाबला करना था।

कंपनी सरकार ने कर्नल फौसेट को एक बड़ी सेना के साथ होल्कर के कोंच इलाके पर अधिकार करने के लिए भेजा। होल्कर ने अपनी सेना अमीर खां पिंडारी के नेत्रत्व में फौसेट के विरुद्ध भेजी। कोंच की स्थिति इस समय बहुत खराब हो रही थी। जिसको मौका मिलता उसी सरकार के अधिकारी आकर यहाँ की जनता से जबरजस्ती टैक्स वसूल करके ले जाते। कंपनी के दलाल भी इस तरह की खबर को हवा से रहे थे कि जल्द ही कोंच पर कंपनी का राज होने वाला है। कोंच के जमीदार भी अपनी स्थिति को मजबूत करके किसी न किसी एक पक्ष का साथ देने का निर्णय करने को मजबूर हो रहे थे। कोंच से पांच मिल दूर सलैया और अमिता के जमीदारों ने अपनें राजा होल्कर का साथ देने का निर्णय लिया। कोंच के लोगों को बाहर से आने वाले लोगों से दोनों तरफ की फ़ौज के मूवमेंट की सुचना मिल रही थी। यहाँ के ब्यापारियों ने अपने परिवारों को कोंच से बाहर भेजना शुरू कर दिया। एक सुचना के अनुसार कोंच के सांभर नमक के व्यापारी नवल सांभरिया ने अपना परिवार बसोब भेजा था। यह सब हो रहा था तभी होल्कर का सेनापति अमीरखां पिंडारी फ़ौज के साथ सलैया आ गया।

आज इतना ही, कोंच की लड़ाई अब अगले पोस्ट में। धन्यवाद

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© देवेन्द्र सिंह  (लेखक)
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