देवेन्द्र सिंह जी - लेखक |
झाँसी
में सब अंग्रेजों के मारे जाने की सूचना मिलने के बाद अब वहाँ सहायता भेजने का कोई
औचित्य नहीं रह गया था अत: ब्रॉउन ने कोसर्ट को उरई लौटने का संदेश भेजा क्योंकि उरई
में भी विद्रोह के लक्षण दिखने लगे थे। सैनिक, कस्टम
कर्मचारी और पुलिस अधिकारियों की आज्ञा मानने में आनाकानी करने लगे। ब्राउन चाहते थे
कि कोसर्ट उरई आकर यहाँ की स्थिति को संभालें और मदद करे लेकिन इटावा में भी स्थिति
बिगड़ चुकी थी। कोसर्ट अब तक मोठ पहुंच गया था। उसने ब्राउन को सूचित किया कि उसको झाँसी
में सब अंग्रेजों के मारे जाने की सूचना मिल गई है साथ ही इटावा में भी विद्रोह हो
गया है और वहाँ से मैसेज आया है कि वह तुरन्त ही अपने सैन्य दल के साथ इटावा आवें।
अत: अब वह उरई नहीं आ सकता है और सीधे ही मोठ से शोर्टकट से जालौन होते हुए इटावा जायगा
और 10 या 11 को जालौन पहुंचेगा।
झाँसी
में परिवार के मारे जाने से डिप्टी कमिश्नर ब्राउन की मनोस्थिति बहुत खराब हो गई थी।
जो अधिकारी कालपी के डिप्टी कलेक्टर शिव प्रसाद को कालपी न छोड़ने का आदेश दे रहा था
अब उसने खुद उरई छोड़ने का मन बना लिया था। यहाँ पर कार्यरत डिप्टी कलेक्टर पशन्ना ने
उनको समझाने और धीरज देने की कोशिश की और कहा कि गुरसराय के राजा केशवराव हमारी मदद
करने को तैयार हैं अत: जिला छोड़ने की जरूरत नहीं है। मगर गहरे अवसाद में डूबे ब्राउन
ने उनकी बात नहीं मानी और जिला छोड़ने के निश्चय पर अडिग रहे। जिला छोड़ने के पहले उन्होंने
दो कार्य किये, एक तो यह कि गुरसराय के राजा को संदेश भेजा कि
वे अपने सैनिकों के साथ उरई आएं और शांति व्यवस्था बनाए रखने में स्थानीय अधिकारियों
की मदद करें। इसके साथ ही एक संदेश इंदौर भेजा गया और होल्कर से कहा गया कि वे सैनिक
सहायता भेजें क्योंकि कोंच की जागीर होल्कर की बहिन भीमा बाई की थी (इंदौर से कोई
मदद आती उसके पहले ही इंदौर में क्रांति हो गई अत: वहाँ से कोई मदद नहीं आ सकी) ।
अभी
भी ब्राउन को उरई से जाना आसान नहीं लग रहा था कि किस रस्ते से उरई से जाएं। अत: उन्होंने
तय किया कि कोसर्ट मोठ से इटावा जाने के लिए जालौन 10 या 11 को पहुंचेंगे अत: उन्हीं के साथ जाया जाय क्योंकि
फ़ौज साथ में रहेगी। लेकिन उरई से अपने धन दौलत को साथ ले जाने में एक दिक्कत यह थी
कि जालौन के सिपाहियों और सैनिकों पर विश्वास नहीं किया जा सकता था। अत: उन्होंने अपना
समस्त धन 23 बक्सों में भरकर अपने विश्वासपात्र सेवक रोड जमादार
गोपाल सिंह की सुरक्षा में दे दिए और कुछ बक्से उरई के तहसीलदार महमूद हुसेन को रखने
के लिए दिए। इतना इंतजाम करके डिप्टी कमिश्नर ब्राउन और असिस्टेंट कमिश्नर लैम्ब ने
आगरा जाने के लिए उरई से रात्रि में प्रस्थान किया और 10 जून
को जालौन में कोसर्ट के सैन्य दल के साथ शामिल हो गए जो मोठ से सीधे इटावा जाने के
लिए जालौन आ गया था। डिप्टी कलेक्टर पशन्ना और ग्रिफिथ उरई में ही रुके रहे।
10 जून को ही गुरसराय के राजा केशव राव अपने बड़े पुत्र शिवराम तांतिया तथा चौथे
पुते सीताराम नाना और काफी सैनिकों के साथ जालौन पहुचे और ब्राउन से मुलाकात की। ब्राउन
ने केशवराव से सरकारी अमला जो अभी भी उरई में था उसकी मदद करने को कहा जिसको केशवराव
ने स्वीकार कर लिया परन्तु एक अधिकार पत्र लिखित रूप में देने को कहा। ब्राउन को इसमें
क्या एतराज होता एक मोहर्रिर को बुला कर एक अधिकार पत्र लिखवाया गया जिसका सारांश यह
था कि राजा केशवराव को जिले में शांति व्यवस्था कायम करने में सरकारी अधिकारियों और
कर्मचारियों की सहायता करने के लिए अधिकृत किया जाता है। 12 जून
1857 को ब्राउन, लैम्ब, कोसर्ट, अलेक्जेंडर परिवार और कस्टम अधिकारी मैकाई ग्वालियर
कन्टेनजेंटम के साथ इटावा के लिए चले। इधर ब्राउन का जाना हुआ कि केशवराव ने मोहर्रिर
को रिश्वत देकर अधिकार पत्र की भाषा, जो कि उर्दू थी, में कुछ इस प्रकार से हेर-फेर
करवा लिया कि उसका अर्थ यह निकलने लगा कि ब्राउन ने जिले का प्रबंध केशवराव को सौंप
दिया है। केशवराव ने तुरन्त ही इस अधिकार पत्र को सब तहसीलदारों को भेज कर सूचित कि
चूँकि जिले का प्रबंध डिप्टी कमिश्नर ने उनको सौंपा है अत: जिले के सब कर्मचारी अपनी
रिपोर्ट सीधे उन्हें भेंजें। जालौन के तहसीलदार इनायत हुसेन को भी यह पत्र मिला। पुराने
तहसीलदार थे जानते थे कि जिले में दो अंग्रेज डिप्टी कलेक्टरों के होते हुए किसी दूसरे
को जिले का कार्य कैसे दिया जा सकता है। दूसरे आदेश में कटिंग भी थी अत: उनको शक हुआ।
उन्होंने तुरन्त एक हरकारा ब्राउन के पास भेज कर पूरी बात से अवगत कराया। मूल पेपर
भी संलग्न करके भेजा। ब्राउन अभी जिले से बहुत दूर नहीं गए थे। ब्राउन ने समझ लिया
कि केशवराव ने पत्र की भाषा बदल दी है पर अब उनके पास इतना समय और सामर्थ्य नहीं थी
कि केशवराव को कोई दंड देते। इसके बाद भी ब्राउन ने केशवराव को पत्र भेज कर कहा कि
उनको केवल शान्ति स्थापना में मदद करने को कहा गया है। इस पत्र की प्रति दोनों डिप्टी
कलेक्टरों को भी प्रेषित की। राजा केशवराव ने इस पत्र को कोई महत्व नहीं दिया।
आज
की पोस्ट यहीं तक। आगे जालौन में क्रांति में क्या हुआ। केशवराव ने क्या-किया आदि आदि
अब अगली पोस्ट में। तब तक के लिए नमस्कार, धन्यवाद।
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© देवेन्द्र सिंह (लेखक)
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