Sunday, May 27, 2018

इतिहास की तंग गलियों में जनपद जालौन - 28

देवेन्द्र सिंह जी - लेखक 

पिछली पोस्ट में मैंने बतलाया था कि अब यहाँ पर दो शक्तियों का शासन शुरू हुआ। जालौन में मराठा राजा गोविंदराव नाना का और कोंच तथा कालपी में कंपनी सरकार का। आइए पहले देखें कि अंग्रेजों ने अपने जीते भाग कालपी और कोंच में किस प्रकार की शासन व्यवस्था लागू की।

दरियादिली या यह कहें कि जनता का दिल जीतने के लिए या यह भी कहा जा सकता है कि कंपनी सरकार के पास तुरन्त ही मालगुजारी वसूल करने की सुविधा नहीं थी इस वर्ष की फसल का जो टेक्स गोविंदराव को मिलता वह वह कंपनी सरकार ने माफ़ कर दिया। नवम्बर 1803 में कैप्टन बेली को बुंदेलखंड जिले में Agent for political affars in Bundelkhand के पद पर नियुक्त किया गया (Lt. Colonel Jhohn Baillie.1772-1833. Younger son of George Baillie. Entred the service of E.I.Co. in 1791; took part in the Military opration of the Maratha war, 1803, but his principal services in India were Political; as Political Agent,1803-7, he succeeded under great difficulties, in establishing British authority in Bundelkhand, and in transfering to company a large and valuable territory, for his services, he was appointed Resident at Lucknow. After leaving India in 1823, he was appointed Director of E.I.Co. Died in London 20 April,1833) लेकिन सैनिक होने के कारण रेवन्यू विभाग के मामले में उनका ज्ञान और अनुभव शून्य था। उन्होंने लखनऊ से जफर नाम के एक व्यक्ति इन मामलों में मदद के लिए बुलाया। उनकी सलाह से कालपी में वसूली के लिए आमिल और सायर डयूटी वसूलने के लिए एक कोतवाल को नियुक्त किया गया।

14 दिसम्बर 1804 की बोर्ड आफ रेवन्यू की प्रोसीडिंग में जिन बातों का उल्लेख है वह एक तरह से यहाँ के शासन के लिए गाइड लाइन की तरह है। प्रोसीडिंग में कहा गया कि जिन अधिकारियों की बुंदेलखंड में नियुक्ति की गई है वे तुरन्त अपने तैनाती स्थान में जाकर ज्वाइन करें। उनसे यह भी अपेक्षा की गई कि वे कंपनी के कायदा कानूनों को वहां पर लागू करें लेकिन जो कायदे कानून पहले से ही लागू हैं उनका भी ध्यान रखें- (All the officer appointed to the management of Zila of Bundelkhand have been directed to procced to their respective stations with all possible expedition. It is intended to introduce the laws and regulation in force in the ceded provinces in to the new territory; meanwhile the civil officers of those Zilas should regulate their conduct according to sprit and princples of regulation in force. (proceedings, Board of Revenue 14 December, 1804)

जुलाई 1805 में बोर्ड ऑफ़ रेवन्यूने जिले के कलेक्टरों को एक आदेश द्वारा जीते और अधिग्रहण किए हुए क्षेत्र में बनारस का तहसीलदारी सिस्टम लागू करने को कहा। इस सिस्टम में तहसीलदार को फिक्स वेतन नही दिया जाता था। वह जितना रेवन्यू वसूलता उसका 10% कमीशन उसको मिलता। तहसीलदार को जमानत भी जमा करनी पड़ती थी। जो रेवन्यू वह वसूल नही कर पाता उसकी जिम्मेदारी भी उसी पर रहती और वसूल न कर पाने का कारण भी बतलाना पड़ता था। इस सिस्टम के तहत कालपी, कोटरा, सैदनगर, रायपुर, और कोंच में आमिलों की नियुक्ति हुई। मै आपसे उनके नाम साझा करता की सबसे पहले कौन से कर्मचारी इन इलाको में नियुक्त किये गए थे। ये नाम बहुत खोज के बाद मिले थे। कालपी का कार्यभार मीर आबिद अली को मिला। उनको फसली 1210 के 1,97,735 रु० तथा फसली 1211 के 1,35,758 रु० वसूलने थे। कालपी के साथ ही रायपुर का चार्ज उनको दिया गया क्योंकि रायपुर कालपी के पास था और वहाँ से दो वर्षों के 11601 रु० 11508 रु० ही वसूले जाने थे। कोटरा में हरीमोहन पंडित नियुक्त किए गए। उनका दोनों वर्षों का लक्ष्य था 56531 रु० और 45983 रु०। सैदनगर में मीर इकराम अली की नियुक्त हुई लक्ष्य था 14508 रु० और 10556 रु०। कोंच का चार्ज सैफुद्दीन को मिला, उनको फसली वर्ष 1210  के 2,22,506 रु० और 1211 के 2,26,966 रु० वसूलने थे। 

मराठों के समय में इतनी सख्ती नहीं थी। किसानों को लगान देना भारी पड़ने लगा। अब हालत यह थी कि तहसीलदार जिनको आमिल भी कहते थे टेक्स न देने वालों के नाम कलेक्टर को भेज देते और उनकी प्रापर्टी को अटेच कर लेते। कलेक्टर को ऐसे आदमी को हवालात में भी भेजने की भी पावर थी। B.H. Baden-Powel की पुस्तक The Land System of British India के अनुसारThis rule caused the Tahsildar to be hard task master. He found it necessary to make landlords give security for the rent, otherwise they reaped the crop and declined to pay the revenue. If landlords failed to furnish security the Tahsildar was permitted to place watchmen over the crop at the expense of the landlords. The method of paying the Tahsildar made him an exceedingly wealthy and important person.

शीघ्र ही सरकार की समझ में आ गया कि यह सिस्टम यहाँ के लिए ठीक नहीं है। जल्द ही कंपनी सरकार ने एक कमीशन बना कर यहाँ के लिए एक रिपोर्ट देने को कहा। इस आयोग के अध्यक्ष मि० बुक थे तथा सदस्यों में कैप्टेन बेली, जो गवर्नर जनरल के एजेंट थे, तथा ले०क० मार्तिन्दल जो इस क्षेत्र के सबसे बड़े सैन्य अधिकारी थे। इस आयोग की सलाह पर मि० जे०डी०इर्श्किन को बुंदेलखंड जिले का कलेक्टर और मि०वार्डी को जज एंड मजिस्ट्रेट बना कर भेजा गया। इन्होने तय किया कि जैसे ही इन तहसीलदारों का टर्म समाप्त हो निश्चित तनखाह पर कर्मचारी नियुक्त किए जाएँ। इन सब कोशिशों के बाद भी कोंच परगने से पूरा लगान वसूल नहीं हो पाता था। कंपनी सरकार ने कलेक्टर को खुद कोंच जाकर टेक्स वसूलने को कहा। इस विषय में बुंदेलखंड के कलेक्टर का एक पत्र मुझको मिला जिससे कोंच की सही स्थिति का पता चलता है। पत्र आपके सामने करता हूँ जो इस प्रकार है - Condition of Konch- It appeared from the balance account of the Pargana of Konch that the sum of Rs.30836-3-3 was due from that Parganah on account of the year 1213 fasali, and directing me to collect that amount without delay, and to pay it to public treasury. I have the honour to inform you that the balance of the year 1213 fasali is due from the Garibands, or refractory farmers, who held forts in those parganah, and not from the Zamindars. Those Garibands continuasly withhold the payment of the revenue, and applied it to their own use; and Colonel Howkins, the officer commanding the troops in Bundelkhand was congectuently employed to bring them under subjection, and he demolished the forts in their possession and they fled out of the district. Captain Baillie arrived in the parganah at the period of concluding the settlement of the revenues, and he personally took engagement from the Zamindars. At the time, however, of Captain Baillie’s return towards Banda, it was frequently mentioned, and likewise to Captain Baillie, that the Garibands who had been expelled would return to the district, would excite disturbances and commit depredations, to the determent of public revenue, and that troops could oppose but an eneffectule check to predatory incursions of that matter. From these considerations, I submitted a petition to Captain Baillie. इस रिपोर्ट का अर्थ यह है कि टेक्स इस लिए वसूल नहीं हो पाता है कि यहाँ के गढ़ीबंद ठाकुर टेक्स नहीं देना चाहते। जब फ़ौज भी जाती है तो वे भाग जाते है और जब फ़ौज बाँदा लौट जाती है तब ये लौट आते हैं और किसानो से वसूली करके अपने लिए इस्तेमाल करते हैं। (गढ़ीबंद ठाकुरों के बारे में मै आपको बतला दूँ ये सब बिलायाँ, अमिटा आदि के जमीदार थे जो होल्कर के पक्षधर थे और उनकी तरफ से अमीर खासं पिंडारी की सहायता करने में आगे थे तथा कंपनी की फ़ौज के विरोध में लडे थे)

कालपी और कोंच पर कंपनी के अधिकार के बारे में दोनों जगहों के इतिहास के बारे में ज्यदा कुछ लिखने को नही है क्योंकि सरकार का केवल एक ही कार्य नजर आता है कि कैसे यहाँ से ज्यादा से ज्यादा टेक्स वसूला जाय। इसके लिए उन्होंने यहाँ पर कई बन्दोबस्त (सेटेलमेंट) किए और हर बार टेक्स बढ़ाया। 1806 में सबसे पहले इर्श्किन ने कोंच के 96 गांवों का बन्दोबस्त किया था। यह केवल एक वर्ष के लिए सरसरी ही था। कोंच का मूल्यांकन 1,72,511 रु० और कालपी का 76,285 रु० का हुआ। अगले वर्ष 1807 में फिर इर्श्किन ने ही किया। अबकी बार कोंच का बढ़ कर 1,75,929 रु० और कालपी का बढ़ा कर 84,396 रु० कर दिया गया। यह तीन वर्षों के लिए था। 1810 में कोंच और कालपी का बन्दोबस्त होना था। यह वाउनचेप ने किया। इनके बारे में थोडा सा जान लीजिए (John Wanchop, Collecttor of Bundelkhand from 1808-1810. Judge of Bundelkhand 1812. Died at Kalinger at the age of 36 years) इनके बन्दोबस्त में एक मजेदार बात यह रही कि इन्होने लगान नहीं बढ़ाया मगर यह नियम लागू किया कि टेक्स जो अभी तक बालाशाही रुपए में लिया जाता था वह सिर्फ फरुखाबादी रुपए में ही लिया जायगा। देशी रुपए और फरुखाबादी रुपए के एक्सचेंज रेट में इतना ज्यादा फर्क था टेक्स अपने आप ही 13.5% बढ़ गया। सरकार टेक्स लगातार बढाए जा रही थी तभी 181 में कालपी में अकाल पड़ गया मगर सरकार ने कोई ध्यान नही दिया और अगले बन्दोबस्त की तयारी शुरू कर दी। 1818 में स्काट वार्निग ने जो बन्दोबस्त किया उसने कोंच का बढ़ा कर 2,16,533 रु० कर दिया और कालपी का बढ़ा कर 1,15,334 रु० कर दिया। सरकार ने दुर्भिक्ष जनता के कष्टों की ओर जरा भी ध्यान नही दिया।

इस पोस्ट में इतना ही। यह आम लोगों को इतनी अच्छी नहीं लगेगी क्योंकि इसमें रोचकता कम है, किस्सागोई नहीं है। लेकिन लिखना इस लिए जरूरी लगा कि कुछ शोधार्थी जिले के इस पक्ष के बारे में भी जानना चाहते थे। तो सोचा कि जो सूचना मेरे पास है वह साझा कर लूं शायद किसी के काम की हो। धन्यवाद।


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© देवेन्द्र सिंह  (लेखक)
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