देवेन्द्र सिंह जी - लेखक |
इतिहासकार बदायुनी बीरबल से बहुत खपा रहता था। मुहम्मद
हुसेन आजाद, मुगालात-ए-मौलाना
मुहम्मद हुसेन आजाद भाग-एक (संपादित) आगा मुहम्मद बाकिर लिखते हैं कि एक बार अकबर ने
एक पत्र अबुलफजल से बीरबल के लिए लिखवाया था जिसमें बीरबल के नाम के आगे पच्चीस आदरसूचक
संबोधन थे। दरबारी चाहते थे कि बीरबल को अकबर की निगाह में हर हालत में गिरा दें। इसका
मौका उनको मिला कंधार के मामले में। कंधार में विद्रोह को दबाने के लिए मुगल सेना को
जाना था। दरबारियों ने अकबर को इस सेना की कमान बीरबल को देने की सलाह दी। अकबर इसके
लिए तैयार नहीं था। बीरबल ने खुद आगे आकर सेना के साथ कंधार जाने की इच्छा जताई। मजबूर
होकर बादशाह ने बीरबल को युद्ध में जाने की आज्ञा दे दी। कंधार के युद्ध में वीरता
से लड़ते हुए कालपी के इस वीर ने वीरगति प्राप्त की। यह युद्ध कालान्धरी की घाटी में
लड़ा गया था। बीरबल की मौत संभवतः 17 फ़रवरी, 1586 को हुई थी। बीरबल का शव भी नहीं मिला था। बीरबल की मौत से अकबर को बड़ा आघात
लगा। वह कई दिनों तक दरबार में भी नहीं आया। कहा तो यहाँ तक जाता है कि उसने कई दिनों
तक भोजन भी नहीं किया। जब वह दरबार में आया तो उसने इन शब्दों में अपना दुःख व्यक्त
किया -
कदम दिल के अजीन वाकिया जिगर खूने
अस्त।
कदम दीदा के अजीन हादिसा जिगर खूने अस्त।।
अब इसका अर्थ मुझसे न पूछिएगा क्योंकि यह भाषा मुझे
नहीं आती, जो पढ़ा वही लिख दिया है। शायद कोई
अर्थ भी बतला दे।
बीरबल के दो पुत्रों लाला और हरहर राय का उल्लेख अकबरनामा
में है लेकिन दोनों ही अयोग्य निकले, अतः दरबार में किसी पद पर नहीं पहुंच सके। लाला
के बारे में कहा गया कि वह साधू हो गया था। हरहर राय कुछ दिनों राजकुमार दानियाल के
साथ रहा। यह इस बात से पता चलता है कि दानियाल ने एक पत्र हरहर राय के द्वारा अकबर
के पास भेजा था, जिसमें उसने कहा था कि अब मैंने शराब पीना छोड़ दिया है। बीरबल के बारे
में इतना ही, अब कुछ आगे की सुनिए।
अकबर के समय में कालपी के सैयद मूसा और मोहनी का प्रेम
प्रसंग बड़ी चर्चित घटना रही है। चोब सिंह वर्मा ने मुगल रोमान्सेज में इसका वर्णन किया
है। हुआ यह की रणथम्भौर के अभियान में कालपी के एक सैयद के पुत्र मूसा कालपी से आगरे
गए। आगरे में वह जनाब एक स्वर्णकार की स्त्री मोहनी के प्रेम में रम गए। उससे विवाह
न कर पाने के गम में सैयद मूसा की आगरे में मौत हो गई। प्रेमी के विरह में मोहनी ने
भी जान दे दी। वर्मा जी के अनुसार दोनों प्रेमियों की कब्र आगरा में किले और ताजमहल
के मध्य एक टाइल में अभी भी मौजूद है।
जिले में आला दर्जे के प्रेमी थे तो विद्वान भी थे।
अकबर के समय में कालपी में शेख हसन कालपी वाले नामक एक विद्वान रहते थे। फैजी की पुस्तक
मवारिक उल्कालिम में शेख हसन का जिक्र है। एक पत्र में वह लिखते हैं कि जब आप
आवें मकसद उष शोअरा नामक ग्रन्थ लेते आवें।
इसी समय कालपी में एक एकांतवासी फ़क़ीर शेख बुरहान का
भी जिक्र मिलता है। कहा जाता है कि वे अरबी पढ़-लिख नही सकते थे लेकिन कुरान की बड़ी
अच्छी व्याख्या करते थे। उनकी मौत सौ वर्ष की उम्र में हुई थी। ये सूफी संत थे और जिस
गुफा में रहते थे उसी में इनको दफनाया गया था। प्रसिद्ध कवि मलिक मोहम्मद जायसी के
बारे में कहा जाता है कि वे शेख बुरहान के शिश्य थे। उनके काव्य में की जगह पर इनका
जिक्र मिलता है। जैसे
या पाएऊ गुरु मेहदी मीठा, मिला पंथ सो दर्शन दीठा।
नाम पियार
शेख बुरहानू, नगर कालपी हुत
गुर थानु।।
पदमावत में भी जायसी ने अपने गुरु शेख बुरहान को याद
किया है। उन्होंने लिखा –
गुरु मेहदी सेवक मै सेवा, चले उताइल जेहि कर सेवा।
अगुवा
मथे शेख बुरहानू, पन्थ लाई मोहि दिन्ह गियानू।।
जौनपुर के शासक सुल्तान हुसेनशाह शार्की के समय में
उनके एक दरबारी कवि कुतबन जिन्होंने म्रगावती ग्रन्थ लिखा था के बारे में कहा जाता
है कि वे भी शेख बुरहान के शिश्य थे।
इन सब बातों को देखते हुए यह कहने में मुझे कोई संकोच
नही है कि कालपी को इस समय भक्ति और संस्कृति के महत्वपूर्ण केंद्र के रूप में पूरे
भारतवर्ष में ख्याति प्राप्त थी।
आज इतना ही, पढिये, अपनी राय प्रतिक्रिया दीजिए। धन्यवाद
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© देवेन्द्र सिंह (लेखक)
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